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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.५० ज्योतिष्कदेवानां विमानादिकम् ___ ७८७ काणां चन्द्रादीनां देवानाम् 'विरियमसंखेज्जा' तिर्यगसंख्येयानि 'जोइसिय बिमाणावाससयसहस्सा' ज्योतिष्कविमानावासशत सहस्राणि 'भवंतीति मक्खाय' भवन्तीत्याख्यातं मया (वर्द्ध मानेन) तथाऽन्यैरपि तीर्थकरैरिति । 'ते णं विमाणा' तानि खलु विमानानि 'अद्ध कविसंठाणसंठिया' अर्द्धकपित्य संस्थानसंस्यि. तानि 'एवं जहा ठाणपदे' एवं यथा स्थानपदे स्थानाख्ये प्रज्ञापनाया द्वितीय पदे तथा वक्तव्यम् । कियत्पर्यन्तमित्याह- 'जाव' इत्याह-यावत्-यावत्पदेन 'अब्भुग्गय मृसिय पहसिया इव' इत्यादि विमानावासवर्णनमत्र वाच्यम् । तेषु तीर्थंकरों का कहना है 'ते णं विमाणा अद्धकविट्ट संठाणठिया एवं जहा ठाणपदे जाव चंदिमसूरिया य तत्थ णं जोतिसिंदा जोतिसरायाणो परिवसंति महिडिया जाव विहरंति' वे विमान अर्धकपित्थ-कैथ-के जैसे आकार वाले हैं। 'एवं जहा ठाणपदे' इस सम्बन्ध में प्रज्ञापना के द्वितीय स्थान पद में जैसा कथन किया गया है, वैसा ही कथन यहां पर भी कर लेना चाहिये वह वर्णन कहां तक कहना चाहिये ? इस पर कहते है-'जाव इत्यादि । यावत्पद से-'अब्भुग्गय मुसियपहसिया इव' इत्यादि विमानावासों का वर्णन यहां कर लेना चाहिये। उन विमाना. वासों में बृहस्पति से लेकर अंगारक पर्यन्त के ग्रह, अठाईस नक्षत्र और तारे रहते है। इनका वर्णन यहां कर लेना चाहिये । वे ग्रह नक्षत्र तारागण अपने अपने विमानावासों का तथा सामानिक देवों से लेकर आत्मरक्षकदेव पर्यन्तों का तथा अपनी अपनी अग्रमहिषियों का एवं ऐसे और भी बहुत से देव और देवियों पर आधिपत्य करते हुए तीय शनु छ. 'ते ण विमाणा अद्ध कविठ्ठसठाणसंठिया एवं जहा ठाण पदे जाव चदिमसूरियाय तत्थ णं जोइसिंदा जोइसियरायाणा परिवसंति महिड्डुढिया जाव विहरति' त विमान अर्धा ४२ हाना मारना छे. 'एवं जहा ठाण पहे' मा समयमा प्रज्ञापन सूत्रना भीon २थान५मा प्रभानु थन કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન અહીંયા પણ સમજી લેવું. તે વર્ણન ४यां सुधीनुमडिया ४३ मे भाट 'जाव' त्या सूत्रा8थी उस छे. यावात्पथी 'अब्भुग्गय मुसिय पहसिया इव' त्याहि विमानावासोनु पनि અહીયાં કરી લેવું જોઈએ. એ વિમાનાવાસમાં બૃહસ્પતિથી લઈને અંગારક પર્યન્તના ગ્રહો, અઠયાવીસ નક્ષત્ર અને તારાઓ નિવાસ કરે છે. તે બધાનું વર્ણન અહિંયાં કરી લેવું જોઈએ. તે ગ્રહ, નક્ષત્ર, તારા ગણ પિત પિતાના વિમાનાવાસ તથા સામાનિક દેવેથી લઈને આત્મરક્ષક દેવ સુધીના તથા પિત પિતાની અઝમહિષિનું એવં એવા ઘણુ દેવ અને દેવિ પર અધિ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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