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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ४९ वानव्यन्तरदेवानां भवनादिकम् ७७७ हे - सम्प्रति-पिशाच कुमारेन्द्रस्य कालस्य पर्षन्निरूपणार्थमाह - 'कालस्स णं भंते ! पिशाय कुमारिदस्स पिशायकुमाररण्णो' कालस्य खलु भदन्त ! पिशाच कुमारेन्द्रस्य पिशाच कुमारराजस्य ' कइ परिसाओ पन्नत्ताओं' कति पर्षदः प्रज्ञप्ताः - कथिता इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' गौतम ! 'तिनि परिसाओ पन्नत्ताओ' तिस्र स्त्रिसंख्यकाः पर्षदः - सभाः प्रज्ञप्ताःकथिता इति । पर्षद स्त्रैविध्यं दर्शयति- 'तं जहा ' इत्यादि, 'तं जहाँ ' तद्यथा - 'ईसातुडिया दढरहा' ईशात्रुटिता दृढरथा 'अभितरिया ईसा' आभ्यन्त रिका ईशा 'मज्झिमया तुडिया' माध्यमिका त्रुटिता 'बाहिरिया दढरहा' बाहया दृढरथा । सम्प्रति-तत्परिषद्गत देवदेवी संख्यां पृच्छति - 'कालस्स णं भंते' कालस्य खलु भदन्त ! 'पिशाय कुमारिदस्स पिशाय कुमाररन्नो' पिशाच कुमारेन्द्रस्य पिशाचअब पिशाचकुमारेन्द्र कालकी परिषदाका निरूपण करते है 'कालस्स णं भंते' इत्यादि । 'कालस्स णं भंते' पिसायइंदस्स पिसायरन्नो कति परिसाओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त । पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल की कितनी परि दाएं कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है । 'गोयमा तिनि परिसाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! पिशाचेन्द्र पिशाचराजकालकी तीन परिषदाएं कही गई । 'त जहा' जो इस प्रकार से आगे बताई जा रही है 'ईसा तुडियाद्वरहा' इशा, त्रुटिता और दृढरथा इन में इशा परिषदा आभ्यन्तरका परिषदा के नाम से 'मज्झमिया' तुडिया' त्रुटिता परिषदा मध्यमिका परिषदा के नाम से और 'बाहिरिया ढरहा' दृढरथा परिषदा वापरदा के नाम से प्रसिद्ध है 'कालस्स णं भंते । पिसायकु मारिंदरस અધિપતિ પણ કરતા થકા ભાગ ઉપભાગાને ભાગવતા થકા રહે છે. આ તમામ વર્ણન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાંથી સમજી લેવું. હવે પિશાચકુમારેન્દ્ર કાલની પરિષદાનું વર્ણન કરવામાં આવે છે 'कालस्स णं भंते !' इत्यादि 'कालस्स णं भंते ! पिसाय इंदस्स पिसाय रन्नो कइ परिसाओ पन्नताओ' હે ભગવન્ પિશાચેન્દ્ર પિશાચ રાજ કાલની કેટલી પરિષદાએ કહેવામાં આવી छे. ? या प्रश्नना उत्तरमां प्रभुश्री उहे छे ! 'गोयमा ! तिन्नि परिसाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! पिशाचेन्द्र पिशायरान असनी ऋण परिषद्याओ हेवामां भावी छे' तं जहा' ने या प्रमाणे छे. 'ईसा तुडिया दढरहा' या त्रुटितां, याने दृढरथा तेमां ईशा परिषदा आल्यन्तरिक्षा परिषहाना नाभथी 'मज्झमिया तुडिया' त्रुटिता परिषदा मध्यमिका परिषहना नामथी भने 'बाहिरिया दढरहा ' दृढरथा परिषद्या माह्यपरिषहाना नाभथी प्रसिद्ध छे. 'कालस्स णं भंते ! पिसाय जी० ९८ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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