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________________ ७३६ जीवाभिगमसूत्र पदम, तत्प्रपञ्चयन् प्रपञ्चयन् विहरति एवमिदमस्माभिः पर्यालोचितमिदं कर्तव्य. मन्यथा दोष इति विस्तारयन्नास्ते इति । 'बाहिरियाए परिसाए सद्धिं पयंडेमाणे पयंडेमाणे विहरई' बाह्यया पर्षदा सार्द्ध यदाभ्यन्तरिकया पर्षदा सह पर्यालोचित माध्यमिकया सह गुणदोषप्रपञ्च कथनतो विस्तारितं पदं तत् प्रपश्चयन् प्रपञ्चयन् विहरति आज्ञाप्रधानः सन् अवश्यं कर्तव्यर्तव्यतया निरूपयन२ तिष्ठति, यर्थद भवदभिः कर्त्तव्यम् इदं न कर्त्तव्यमिति, तदेव या एकान्ते गौरवमेव केवलं प्राप्नोति, यया च सहोत्तममतित्वात् स्वल्पमपि कार्य प्रथमत एव पयर्यालोचनायां चात्यन्तमभ्यन्तरा विद्यते इत्याभ्यन्तरिका प्रथमा भवति, या तु गौरवार्हा रित किया गया है इसे विस्तार के साथ उन्हें समझाता है 'बाहिरियाए परिसाए सद्धिं पयं पयंडे माणा २ विहरई' फिर बाह्य परिषदा के देवों को विचारित लिये गये कार्य करने के लिये आदेश देता है 'से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चई चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररणो तओ परिसाओ पण्णत्ताओ समिया चंडा जाता'-इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि असुरेन्द्र असुरकुमार गज की समिता चण्डा, और जाया नाम की तीन परिषदाएं है । 'अभितरिया समिया, मज्झमिया चंडा बाहिरिया जाता' उनमें एक आभ्यन्तर परिषदा है की जिसका नाम समिता है दूसरी मध्यम परिषदा है जिसका नाम चंडा है और तीसरी बाह्य परिषदा है जिसका नाम जाता है तात्पर्य इस कथन का यही है कि जो आभ्यन्तर परिषदा है वह केवल एक गौरव की वस्तु है इसके साथ चमर उत्तम मति वाले होने के कारण थोड़ा मा સૂચના આપે છે. અને એ કાર્ય કરવાનો વિચાર શા માટે કરવામાં આવેલ छ । मामत विस्तार पूरी तेयान समनवे छे. 'बाहिरियाए परिसाए सद्धि पयं पयंडे माणे पय डेमाणे विहरई' अन मा परिषहाना । साथै विया२पामा मावेस आय ४२वानी माज्ञा मापे छे. 'से तेणट्रेण गोयमा ! एवं वुच्चइ चमरस्स ण असुरिंदस्स असुरकुमाररष्णा तओ परिसाओ पण्णत्ताओ समिया चंडा जाया' मा २६४थी हे गौतम ! में मे धुं छे , मसुरेन्द्र અસુરરાજની સમિતા ચંડા, અને જાયા એ નામની ત્રણ પરિષદાઓ છે. 'अभिंतरिया समिया, मज्झमिया चंडा, बाहिरिया जाया' तमां से माल्यं તર પરિષદા છે કે જેનું નામ સમિતા છે. બીજી મધ્યમ પરિષદા છે, જેનું નામ ચંડા છે. અને ત્રીજી બાહ્ય પરિષદા છે જેનું નામ જાયા છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એજ છે કે જે આભ્યન્તર પરિષદા છે, તે કેવળ એક ગૌરવની વરતુ છે, તેની સાથે અમર ઉત્તમ બુદ્ધિમાન હોવાના કારણે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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