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________________ ७१३ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४४ हयकर्णद्वीपनिरूपणम् शुद्धदन्तद्वीपो वर्त्तते तावत्पर्यन्तमिति, एकोरुक द्वीपादारभ्याऽष्टाविंशतितम शुद्धदन्त द्वीप पर्यन्ताना मौत्तराणामष्टाविंशत्यन्तरद्वीपानां सर्व वर्णनं पूर्पबदेव वाच्यमिति, 'जाव' इति, यावत्मकरण समाप्ति पर्यन्तमिति। उपसंहरन्नाह-'से तं अंतरदीवगा' ते एते अन्तरद्वीपका इति, ते-ये पूर्व प्रदर्शिताः एते-अत्रोपदर्शिता अन्तरद्वीपा यथाक्रमं प्रदर्शिता इति ॥ ___'अन्तरद्वीपक मनुष्यान् निरूप्याकर्मभूमक मनुष्यान् निरूपयितुमाह-'से कि तं' इत्यादि, 'से किं तं अकम्मभूमग मणुस्सा' अथ के ते अकर्मभूमक मनुष्याः ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'अकम्मभूमग मणुस्सा तीसवीहा पनत्ता' अकर्मभूमकमनुष्या स्त्रिंशद्विधाः-त्रिंशत्प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः-कथिताः, "तं जहा' तद्यथा-'पंचहि हैमवएहि पञ्चभिरैमवतैः, 'एवं' एवम्-अनेन प्रकारेण पञ्चभिहैमवतैः, पञ्चभिर्हरिवर्षेः, पञ्चभिः रम्यकवर्षेः, पञ्चभिर्देवकुरुभिः, पञ्चभिरुत्तरकुरुभिरितित्रिंशत्क्षेत्रभेदै स्तदुत्पन्ना मनुष्या अपि त्रिंशद् भवन्ति इति । एतदेव 'जहा' इति सूत्र पदेन प्रदर्यते-'जहा' इत्यादि, 'जहा पण्णवणापदे जाव पंचहिं उत्तरकुरुहि' यथा द्वीप तक ये अन्तरद्वीप यहां अठाईस हैं। इन सबका वर्णन दक्षिण दिशा के अन्तरद्वीपों के वर्णन जैसा ही है । इस तरह यहां तक अन्तरद्वीपों का वर्णन किया गया है यहां तक अन्तरद्वीपों के मनुष्यों का निरूपण करके अब अकर्मभूमिक मनुष्यों का निरूपण करते हैं-'से किंतं' इत्यादि। 'सेकिं ते अकम्मभूमगमणुस्सा' हे भदन्त ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-हे गौतम' अकम्मभूमगमणुस्सा तीसवीहा पण्णत्ता' अकर्मभूमक मनुष्य तीस प्रकार के कहे गये है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-'पंचहिं हेमवएहिं पांच हैमवत क्षेत्र के मनुष्य एवं जहा पण्णवणा पदे जाव पंचहिं उत्तर कुरुहिं' મળીને અઠયાવીસ અંતરદ્વીપ અહિં કહેલ છે. તે બધાનું વર્ણન દક્ષિણ દિશાના અંતર દ્વીપના વર્ણન પ્રમાણે જ છે. આ રીતે આટલા સુધી અંતર દ્વીપનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. આ રીતે આટલા સુધી અંતરદ્વીપના મનુષ્યોનું નિરૂપણ કરેલ છે. भूमिना मनुष्योनु नि३५६५ ४२वामा मा छे. 'से कितत्याह 'से किं त अकम्मभूमग मणुस्सा' है भगवन् मममूभिना मनुष्य। કેટલા પ્રકારના છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ! 'अकम्मभूमग मणुस्सा तीस विहा पण्णत्ता' भभूमिना मनुष्य। श्रीस प्रारना ४ामा भावेस छ. 'त जहा' २ मा प्रभाए छ. 'पंचहिं हेमवएहि' पांय २॥ भक्तक्षेत्रना मनुष्य। एवं जहा पण्णवणापदे जाव पचहि उत्तर जी. ९० જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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