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________________ ६७८ जीवाभिगमसूत्रे चउम्मुहमहापहपहेसु' श्रृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वरचतुर्मुखमहापथपथेषु 'णगरणिद्धमणसुसाणगिरिकंदरसंतिसेलोवट्ठाणभवणगिहेसु' नगरनिर्धमनश्मशानगिरिकन्दरसच्छे लोपस्थानभवनगृहेषु, हिरण्यसुवर्णादिबहुमूल्यद्रव्याणि 'संनिक्खित्ताई चिट्ठति' सन्निक्षिप्तानि तिष्ठन्ति किम् ? इति प्रश्नः, भगवानाह-'णो इणढे समढे' नायमर्थः समर्थः नैतानि अय आकरादीनि एकोरुक द्वीपे भवन्तीति भावः।। ___एकोरुकमनुजानां स्थिति दर्शयितु प्रश्नन्नाह-एगोरुयदीवे गं' इत्यादि, 'एगूरुयदीवेणं भंते ! दीवे' एकोरुकद्वीपे खलु भदन्त ! द्वीपे 'मणुयाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?' मनुजानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखेज्जई भागं असंखेज्जइभागेण ऊणगं' जघन्येन पल्योपमस्यासंख्येयभागम् मार्ग वाले रास्ते हैं 'चउक' चार मार्ग वाले रास्ते है। चत्वर चतुर्मुख मार्ग है और महापथ रूप माग है। उनमें एवं 'णगर णिद्धमणसुसाणगिरिकंदरसेलोवट्ठाणभवगिहेसु' नगर की नाली गटर में श्मशानों में गिरि एवं गिरि की कन्दराओं में ऊंचे पर्वत इत्यादि स्थानों में 'सनिक्खित्ताई चिटुंति' द्रव्य गड़ा हुआ होता है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते है-हे गौतम ! 'णो इणढे सम?' यह अर्थ समर्थ नही है-अर्थात् पूर्वोक्त प्रश्न की विषय भूत कोइ भी वात वहां नही होती है और न ग्रामादिकों में कहीं पर भी घन गड़ा हुआ रहता है। अब सूत्रकार एकोस्क द्वीप के मनुष्यों की स्थिति कहते हैं-'एगोरुय दीवेणं भंते दीवे मणुयाणं केवतियं कालंठिई पण्णत्ता' हे भदन्त एकोरुक द्वीप के मनुष्यों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में छ, 'तिगवउक्कचच्चर चउम्मुहमहापहेसु' त्रि भाग पाण! २२ताया हाय છે. ચાર માર્ગવાળા રસ્તા છે. ચત્વર ચાર રસ્તા ભેગા થતા હોય તે ચેક तथा मा५५ ३५ भाभा तथा ‘णगरणिद्धमणसुसाणगिरि कंदरसेलोवट्ठाण भवणगिहेसु' नगरनी ना ८२मा स्मशानामा ५ त सपतानी शुशमामा या पति विगरे स्थानमा 'संनिविखत्ताई चिति' हटायेदु धन हाय छे. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री गौतभस्वामी२ हे छ, 'णो इणटे समटे है ગૌતમ! આ અર્થ ખબર નથી. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત પ્રશ્ન સંબંધી કઈ પણ વાત ત્યાં હોતી નથી. તેમજ ગામો વિગેરેમાં ક્યાંય પણ ધનદટાયેલું હતુંનથી. હવે સૂત્રકાર એકરૂક દ્વીપના મનુષ્યની સ્થિતિનું વર્ણન કરે છે. 'एगोरूयदीवेणं भंते ! दीवे मणु याण केवतिय काल ठिई पण्णत्ता' ३ मापन એકરૂક દ્વીપના મનુષ્યોની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહેવામાં આવી છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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