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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.४० ए० इन्द्रमहोत्सवादि वि. प्रश्नोत्तराः ६४७ पूर्वोक्तानि नटप्रेक्षादीनि प्रेक्षणकानि तत्र भवन्ति किम् ? भगवानाह-‘णो इणद्वे समडे' नायमर्थःसमर्थः यतः 'ववगयकोउहल्लाणं ते मणुअगणा पण्णत्ता समगाउसों' व्यपगत कौतूहलाः खलु ते मनुजगणाः प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'सगडाइ वा' शकट मिति वा' शकटं-लोकप्रसिद्धम् ‘रहाइ वा रथ इति वा तत्र रथो द्विविधःक्रीडारथः संग्रामस्थश्च, तत्र संग्रामस्थस्य प्राकारानुकारिणी फलकमयी वेदिका भवति, क्रीडास्थस्य सा न भवतीत्ययमेव विशेषः 'जाणाइ वा' यानमिति वा यायन्ते-गम्यन्ते अनेनेति यानं गत्र्यादि, 'जुग्गाइ वा' युग्यमिति वा तत्र युग्य मिति गोल्लदेशमसिद्धं द्विहस्तप्रमाणं चतुरस्रवेदिकोपशोभितं पुरुषद्वयोक्षिप्तं पाठक मागधजनों के स्तुति पाठ को सुनने वालों का मेला भरता है क्या? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! 'णो इणट्टे सम?' यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् ये नट के खेल आदि वहां पर नही होते हैं 'क्योंकि 'ववगयकोउहल्लाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता' हे श्रमण आयुष्मन् वे मनुष्य गण कौतुहल से विहीन होते हैं। अर्थात् उनके मन में किसी प्रकार का कौतूहल आदि देखनेकी इच्छा नहीं होती है, 'अस्थि णं भंते ! एगोस्य दीवे दीवे सगडाइ वा रहाइवा, जाणाइवा, जुग्गाइ वा गिल्लीइ वाथिल्लीति वा पिल्लीइ वा, पवहणाणि वा सियाइ वा संदमाणिथाइ वा' हे भदन्त ! उस एगोरुक द्वीप में क्या गाडा होता है ? रथ होता है रथ दो प्रकार का होता है क्रीडा रथ और संग्राम रथ, संग्राम रथ में अनेक प्राकार के आकार की काष्ठ मयी वेदिका होती है और क्रीडा रथ में वह नही होती है। यान-गाडी होती है ? युग्य गोल्ल देश प्रसिद्ध પાઠને સાંભળનારાઓનો મેળો ભરાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌतमस्वामीन ४९ छे , 'णो इणद्वे समढे' मा म सरासर नथी. अर्थात मा नटरीना मे विगेरे त्या ता नथी. भ. 'ववगय कोउहल्ला णं ते मणुयगणा पण्णत्ता' हे श्रम आयु भन! ते मनुष्यगण तुडत विनाना हाय છે. અર્થાત તેઓના મનમાં કઈ પણ પ્રકારનું કૌતુક જોવાની ઈચ્છા હતી नथी. 'अत्थि णं भंते ! एगोरूयदीवे दीवे सगडाइवा, रहाइवा, जाणाइवा, जुग्गा इवा, गिल्लीइवा, थिल्लीतिवा पिल्लोइवा, पवहणाणि वा, सियाइवा, संदमाणी इवा' लगवन् ! से ३४ द्वीपमा शु इय छ ? २५ हाय छ १२थ બે પ્રકારના હોય છે. તેમાં એક કીડા રથ અને બીજે સંગ્રામ રથ કહેવાય છે. સંગ્રામરથમાં અનેક પ્રકારના આકારની લાકડાની વેદિક હોય છે. અને કીડા રથમાં તેવી વેદિકા હોતી નથી. યાન ગાડી હોય છે? યુગ્ય ગેલ્વદેશ પ્રસિદ્ધ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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