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________________ ६४४ जीवाभिगमसूत्रे रोवणमहाइ वा' वृक्षारोपणमह इति वा, चेइयमहाइ वा' चैत्यमह इति वा चैत्यं यक्षायतनम् 'थूभमहाइ वा' स्तूपमह इति वा स्तूपः पीठविशेषः तस्य मह उत्सवः, भगवानाह-'णो इणटे समढे' नायमर्थः समर्थः एतेषामिन्द्रादीनामुत्सवा न भवन्तीत्ययः, यतः-'ववगयमहमहिमाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो !' व्यपगतमहमहिमानः खलु ते-एकोरुक द्वीपक मनुजगणा: प्रज्ञप्ता:-कथिताः हे श्रमणायु मन् ! 'अस्थि णं भंते ! एगोरुयदीवे दीवे' अस्ति खलु भदन्त ! एकोरुक द्वीपे द्वीपे 'गडपेच्छाइ वा' नटप्रेक्षेति वा तत्र नटाः-नाटयकर्तारः तेषां प्रेक्षा-प्रेक्षणकंकौतुकदर्शनोत्सुकजनसमुदायः, 'जट्टपेच्छाइ वा' नृत्यानृत्यकर्तार स्तेषां प्रेक्षणकं तदर्शकिये गये उत्सव का नाम हद महोत्सव और पर्वत महोत्सव है 'रुक्खरोवणमहाइ वा, चेइय महाइ वा' वृक्षारोपण करने को लक्षित करके एवं यक्षायतन को लक्ष्य करके किये गये उत्सव का नाम वृक्षारोपण मह और चैत्य मह है 'थम महाइ वा पीठी विशेष का नाम स्तूप है इस स्तूप को लक्षित करके किये गये उत्सव का नाम स्तूप मह है सो हे भदन्त ! ये सब महोत्सव क्या उस एकोरुक द्वीप में होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इणढे समझे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नही है अर्थात् ये इन्द्रादिमह (उत्सव) वहां पर नहीं हैं। क्योंकि-'ववगयमहमहिमाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' हे अमण आयुष्म. न् ? ये एकोरुक द्वीप निवासी मनुष्य उत्सव करने की महिमा से विहीन होते है। 'अस्थि णं भंते एगोरुय दीवेणं दीवे णड पेच्छाइ वा' हे भद. न्त ! उस एकोरुक द्वीप में क्या नटों के खेल होते हैं ? 'नहपेच्छाइ वा' नृत्य करने वालों के नृत्य को देखने के लिये उत्कंठित हुए मनुष्यों ઉદ્દેશીને કહેવામાં આવેલ મહોત્સવનું નામ “હદમહોત્સવ' અને પર્વત મહોત્સવ छे. 'रुक्खरोवण महाइवा चेइय महाइवा' वृक्षा५५ ४२वान शीर माने यक्षाયતનને ઉદ્દેશીને કરવામાં આવેલા ઉત્સવનું નામ “વૃક્ષારોપણ મહોત્સવ અને येत्त्य महोत्सव छ. 'थूभ महाइवा' पीही विशेषतुं नाम स्तूप छे. भारतूपने ઉદ્દેશીને કરવામાં આવેલા ઉત્સવનું નામ સ્તૂપમહોત્સવ છે. તે હે ભગવન આ બધા જ મહોત્સ એ એકરૂક દ્વીપમાં થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतम स्वामीन ४३ छ'णो इणटे समढे' गौतम ! सामथ' समर्थ नथी. अर्थात् मा छन्द्रह महात्सव। त्यो था नथी. म 'ववगय महमहिमाणं ते मणुयगणा पण्णत्ता समणाउसो' है श्रभा मायुष्मन् ! मा એકેક દ્વીપમાં રહેવાવાળા મનુષ્યો ઉત્સવ કરવાના મહિમા વગરના હોય છે. 'अस्थि गं भंते ! एगोरुय दीवे गं दीवे गड्पेइच्छाइवा' हे मावन से है। ३४ दीपमा शुनटोना त थाय छे? 'नट्टपच्छाइवा' नृत्य ४२वापामासाना જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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