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________________ ५८६ जीवाभिगमसूत्रे बढ़ लक्षणं-शुभलक्षणोपाम् उन्नतं-मध्यभागे उच्चम् कूटाकारनिभं-शिखराकारसदृशं पिण्डितं-पाषाणवत्पिण्डीभूतं शीर्ष येषां ते तथा, 'दाडिम पुष्फपगासतवणिज्ज सरिसनिम्मलसुजायकेसंत केसभूमी' दाडिम पुष्पप्रकाशतपनीय सदृशनिर्मलसुजातकेशान्तकेशाभूमयः, तत्र-दाडिमपुष्पप्रकाशा-दाडिमपुष्पवर्णा ईष. द्रता तथा तपनी येन सुवर्णविशेषेण सदृशाः ईषत्पीतत्वेन सुवर्णवर्णाः निर्मला: -स्वभाविकागन्तुकभलरहिताः, सुजाता:-सुसंस्थिता: केशान्ताः-केशचरणभागाः, तथा पूर्वोक्त स्वरूपाः केशभूमिश्च केशोत्पत्ति स्थानभूता मस्तक त्वगूयेषां ते तथा, 'सामलि बोंड घणनिचिय छोडि यमिउविसयपसत्थ सुहमलक्खणसुंगध सुंदर भुयमोयगभिंगिणीलकज्जल पहट्ट भमरगणणिद्ध णिकुरुंबनिचियकुंचिय चिय पया. हिणावत्तमुद्धसिरया' शाल्मलीबोण्ड घननिचितछोटितमृदु विशद प्रशस्त सूक्ष्मलक्षण सुगन्धसुन्दर भुजमोचक भृङ्गणील कज्जल प्रहृष्ट भ्रमर गण स्निग्ध निकुरम्ब. स्नायुओं से वह सुबद्ध होता हैं और प्रशस्त लक्षणो से समन्वित (दृढ) होता है तथा जैसा कूट-शिखर का आकार होता है वैसा आकार वाला होता है और पाषाण की जैसी पिण्डी होती है ऐसी पिण्डी के समान वह मजबूत और गोल होता है इनके मस्तक के केशों का अग्रभाग, तथा मस्तकके ऊपर की चमडी कि जिसमें केश उत्पन्न होते हैं दाडिम पुष्पके प्रकाश-वर्ण जैसे कुछ लालिमा वाला होता है एवं तपनीय सुवर्ण के जैसा कुछ पीत वर्ण वाला और आगन्तुक मलरहित होने से निर्मल होता है 'सामलिबों डघणणिचिय छोडिय मिउविसय पसत्थ सुहुमः लक्खण सुगंध सुंदर भुयमोयग भिंगिणीलकज्जलपहट्टभमरगणणिद्ध णिकुरंबनिचिय कुंचियचियपयाहिणा वत्त मुद्धसिरया' इनके मस्तक ન હોવાથી નિબિડ ગાઢ હોય છે. તે સ્નાયુઓથી સુબદ્ધ હોય છે. અને ઉત્તમ सेवा समाथी समन्वित (6) डाय छे. तथा २ प्रभारी (५८) शिमरना આકાર હોય છે. એવા આકારવાળું હોય છે. તથા પાષાણ અર્થાત્ પત્થરની પિંડી જેવી હોય છે. એવી પિંડીની માફક મજબૂત અને ગળ હોય છે. તેમના મસ્તકના કેશને અગ્રભાગ તથા માથાના ઉપરની ચામડી કે જેમાં વાળ ઉગે છે, તે દાડમના પુષ્પના પ્રકાશ વર્ણ જેવા કંઈક લાલિમા વાળી હોય છે. તેમજ સોનાના વણે જેવા કંઈક પીળાશ યુકત તેમના વાળ હોય છે. તથા આગન્તુક મલથી રહિત હેવાથી તે નિર્મલ હોય છે. 'सामलि बोंड घणणिचिय छोडियमिउविसयपसत्य सुहुम लक्खण सुगंधसुं दरभुय मोयगभिगिणीलकज्जलपह? भमरगणणि णिकुरंव निचिय कुंचिय चियपदाहि. णावद्धमुद्धसिरया' ताना मस्त ९५२ २ वाणे। हाय छे. त या छता જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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