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________________ ५७६ जीवाभिगमसूत्रे वन्त इत्यर्थः 'सुइकरणा' शुचिकरणाः-शुचीनि पवित्राणि निरूपलेपत्वात् करणानि इन्द्रियाणि येषां ते तथा, 'पम्ह वियडणाभा' पद्मविकटनाभयः-पद्म-कमलं तद्वत् तदाकारा विकटा-विशाला नाभियेषां ते तथा 'सण्णयपासा' सन्नतपार्थाः, सम्यक् क्रमेण अधोऽधः नते पायें येषां ते तथा, 'संगतपासा' संगतपार्था:सङ्गते-देहप्रमाणोचिते पार्वे येषां ते तथा, अतएव 'सुंदरपासा' सुन्दरपार्थाः 'सुजातपासा' सुजातपार्था:-जन्मजात सुन्दरपार्थाः 'मियमाइय पीणरतिय. पासा' मितमा त्रिकणीनरतिदपाः , मिते-परिमिते मात्रि के मात्रया उपेते अन्यूनाधिके पीने-उपचिते रतिदे-आनन्दप्रदे पार्वे येषां ते तथा, 'अकरंडुयकणगरुयगनिम्मल सुजाय निरुवहयदेहधारी' अकरण्डुककनकरुचक निर्मल सुजात निरुपहत देहधारिणः, तत्र अविद्यमानं मांसलत्वेन अनुपलक्ष्यमाणं करण्डुकं पृष्ठ जैसी सुजात-सुन्दर और पुष्ट होती है 'झसोदरा' इनका उदर मत्स्य के उदर जैसा कृश होता है 'सुइकरणा' इनके करण अर्थात् इन्द्रियां पवित्र और निर्लिप्त होते हैं 'पम्इवियडणाभी' इनकी नाभिकमल के जैसी विशाल होती है 'सण्णयपासा' अच्छे रूप में क्रमशः इनके दोनों पार्श्वभाग नीचे २, नत- झुके हुए होते हैं। 'संगतपासा' और वे देह प्रमाण उपचित-पुष्ट-होते हैं अतएव 'सुंदरपासा' वे दोनों पार्थ भाग इनके बडे सुहावने लगते हैं। 'सुजातपासा' इसी कारण वे सुजात जन्म से ही सुन्दर पार्थ वाले कहे गये हैं । 'मितमाइय पीणरतियपासा' और इसी कारण वे उनके दोनों पार्थ भाग परिमित न कमती न बहती किन्तु मात्रोपेत, पुष्ट एवं आनन्द दायकवर्णित किये गये हैं। 'अकरूंड. यकणगरूयगनिग्मलसुजाय निरूवहय देहधारी' वे ऐसे देह के धारी होते पीणकुच्छी' शुक्षी ४हेता घटना ५७मान मा तमना अ५ नामनी भासीन भने पक्षाना पेट वा सुगत सुंदर भने पुट डाय छे. 'ज्ञसोदरा' भर्नु पेट माछवीना पेटश पातj हाय छे. 'सुइकरणा' तमना ४२९१ अर्थात् धद्रिया अत्यंत पवित्र भने नि हाय छे. 'पम्हा वियड़णाभी' भनी नाली माता व विशण हाय छे. 'सग्णयपासा' भश तमनाम- पाव मास नीय नीयन हाय छे. 'संगतपासा' अन ते प्रमाण ७५थित नाम पुष्ट हाय छे. 'संदरपासा' मे6 पाव भाग-५७0 ४ सु१२ हाय छे. 'सुजातपासा' मे २0 तेथे! सुनत अर्थात् मथी सु२ ५७मापामा भावेस छ. मितमाइय पीणरतियपासा' भने मे०४ ४।२६ माना अन्न पाचભાગ પરિમિત હોય છે ઓછાવત્તાં હોતા નથી પરંતુ પ્રમાણપત, પુષ્ટ અને मानहाय पानुपामा आवे छे. 'अकरुंडुय कणगरुयगनिम्मल सुजाय निरूवहय देहधारी' तशा सेवा शरीरने पा२९५ ४२वावाणा हाय छे मना જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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