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________________ ५४४ जीवाभिगमसूत्रे शिल्पिना-परमदक्षेण कलावता विभागरचिते न-विभक्तिपूर्वक कृतेन 'सव्वओ चैव समणुबद्धे' सर्वतः-सर्वासु विक्षु समनुबद्धम् 'पविरललंबंत विप्पइटेहि' प्रविरललम्ब-मानविप्रकृष्टैः, तत्र प्रविरलैः पृथक पृथक भूतैर्लम्बमानैः तत्र प्रवि. रलत्वं मनागपि असंहतत्वमात्रेण भवति, ततो विप्रकृष्ट प्रतिपादनायाह-विप्रकुष्टैर्महदन्तरालैः 'पंच वण्णेहि' पञ्चवर्णैः-कालनीलादिविशिष्टेः 'कुसुमदामेहि' कुसुमदामभि:-पुष्पमालाभिः 'सोभमाणेहिं' शोभमानैः सुन्दरैस्तैः 'सोभमाणे' शोभमानम् 'वणमालकयग्गए चेव दिप्पमाणे' वनमाला वन्दनमाला कृता अग्रभागे यस्य तत् वनमाल कृताग्रम् तथाभूतं संदीप्यमानम् अतिशयेन शोभमान भवति । 'तहे व ते चित्तंगया वि दुमगणा' तथैव-प्रेक्षागृहभिव ते चित्राङ्गका अपि गूंथी गई होती है पूरित-किसी आकृति विशेष के छिद्रों में पुष्पों को भर भर कर चतुराई के साथ की गई होती है और संघातिमपुष्पों के वृन्द जिसमें एक दूसरे पुष्पों के वृन्दों के साथ संघातित कर-मिलाकर गूंथे गये होती है. ऐसी ग्रन्थित, वेष्टित, पूरित और संघातिम के भेद से मालाएं चार प्रकार की होती है-सो चतुर कारीगर के द्वारा गूंथी गई ये चारों प्रकार की मालाएं जिसमें बडी ही चतुराई के साथ सजाकर सब और रखी गई हों और इनके द्वारा जिसकी सौन्दर्य वृद्धि में अधिकता आगई हों तथा 'पविरललंबत विप्पइटेहिं' अलग अलग रूप से दूर-दूर पर लटकती हुई ऐसी 'पंचवण्णेहिं पांच वर्णों वाली 'सोभमाणेहिं' सुन्दर फूल मालाओं से 'सोभमाणे' शोभायमान 'वणभालयग्गए' जो विशेष रूप से सजाया गया हो तथा अग्रभाग में लटकाई गई वनमाला से जो विशेष रूप से चमक रहा हो तो ऐसा वह प्रेक्षा गृह जितना अधिक शोभा की वृद्धि से जो शोभा का ભરી ભરીને ચતુરાઈપૂર્વક કરવામાં આવેલ હોય છે અને સંઘાતિમ પૂરપના સમૂહ જેમાં એક બીજા પુપના સમૂહની સાથે સંપાતિમ કરીને અર્થાત્ મેળવીને ગૂંથેલ હોય છે. એવી ગ્રંથિત, વેષ્ટિત, પૂરિત, અને સંપાતિના ભેદથી ચાર પ્રકારની માળાઓ હોય છે. ચતુર કારિગર દ્વારા ગૂંથવામાં આવેલ આ ચારે પ્રકારની માળાઓ કે જેમાં ઘણીજ ચતુરાઈની સાથે સમજાવીને બધી તરફ રાખવામાં આવેલ હોય, અને તેના દ્વારા જેના સૌંદર્યવૃદ્ધિમાં વધારો थये हाय तथा 'पविरलल बंतं विप्पट्टे हि' Ranan ३ २ २ १टती मेवी 'पंचवण्णेहिं' पांय पणेवाणी सुन्६२ समासासाथी 'सोभमाणे' शालायमान 'वणमालयग्गए'२ विशेष ३५थी सलवामा मावस हाय, तथा અગ્રભાગમાં લટકાવવામાં આવેલ તેરણથી પણ જે વિશેષ પ્રકારથી ચમકી રહેલા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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