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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३सू.३४ एकोरुकद्वीपस्याकारादिनिरूपणम् ५२१ परिणामे परिपाके बलवीर्य हेतवो भवति, 'मज्जविहि बहुप्पगारा' मद्यस्य विधिना विधानरीत्या यदि गण्यन्ते तदेते रसा आसवारिष्टाऽवलेह-क्वाथ वटिकादिभिभँदैहुप्रकाराः 'तदेवं ते मत्तंगा वि दुमगणा' तदेवम्-बहुरसभेदवन्तस्तेऽपि मत्ताङ्गा द्रुमगणा ज्ञेयाः किं ते वनपालादिना समारोप्यन्ते ? तत्राह- अणेग बहुविविहवीससा परिणयाए मजविहीए उववेया' अनेक बहुविविधवित्रपा परिणतेन अनेको-व्यक्तिभेदात् बहु प्रभूतम्, यथास्यात्तथा विविधो-जाति भेदानानाप्रकारो विधिः-स च-केनापि लोकपालादिना निप्पादितोऽपि न भवेत्तत आह-वित्रसा. जैसे प्रशस्त रस से, प्रशस्त स्पर्श से मृदु स्निग्ध उष्ण स्पर्श से युक्त होता है। ___अब उन रसों के गुण का वर्णन करते है-'बलवीरिय परिणामा' पूर्वोक्त सब रस फिर बल, शारीरिक बल, वीर्य आन्तरिक बल इन दोनों में परिणत होने वाले होता है अर्थात् वे रस बल और वीर्य को बढाने वाले होता है। 'मजविहि बहुप्पगारा' मद्य अर्थात् प्रमोद जनक रस विशे के विधान से बहुत प्रकारके बताए गये है जैसे-आसव, अरिष्ट अवलेह क्वाथ वटिकादि भेद होते हैं। पूर्वोक्त दृष्टान्तों को मत्तांग द्रुम गणों पर घटाते हैं-'एवं मत्तंगावि दुमगणा' इन्ही पूर्वोक्त प्रकार के रस जैसे रस वाले वे मत्तांग नाम के दुमगण एकोक दीप में होते हैं। क्या द्रुमगण किसी लोकपाल तथा वनपाल आदि द्वारा लगाये जाते हैं इस शंका का निराकरण करने के लिये सूत्रकारकहते हैं-'अणेग. बहुविविहवीससा परिणयाए मज्जविहीए उववेया' अनेक व्यक्ति भेद से શલાદિ વર્ણ થી, પ્રશસ્ત ગંધ, એટલે કે સુરભિ ગંધથી, શેરડી, ગોળ, સાકર, અને મર્ચંડિકાના જેવા પ્રશસ્ત રસથી પ્રશસ્ત સ્પર્શ થી, મૃદુ, સ્નિગ્ધ ઉષ્ણુ સ્પર્શથી યુક્ત હોય છે. वे थे २सान शुशनु पर्श न ४२वामां आवे छे. 'बलवीरिय परिणामा' પત બધા રસ પાછા બળશારીરિક બળ-વીર્ય આંતરિક બળ આ બનેમાં પરિણત થવાવાળા હોય છે. અર્થાત આ રસ બળ અને વીર્યને વધારનારા होय छे. 'मजविहि बहुप्पगारा' भय अर्थात् प्रभाह १२४ २स विशेषना વિધાનથી ઘણા પ્રકારના બતાવવામાં આવ્યા છે. જેમકે આસવ, અરિષ્ટ, અવલેહ, કવાથ વાટિકા વિગેરે તેના ભેદો હોય છે. હવે પૂર્વોક્ત દટાંને મત્તાંગ કુમગણે પર घटाव छ. 'एवं मत्तांगावि दुमगणा' मा पूति प्रा२न। २स २१॥ २५ વાળા તે મત્તાંગ નામના દ્રમગણ એકરૂક દ્વીપમાં હોય છે. શું ? તે દ્રમણ કોઈ લેકપાલ તથા વનપાલ વિગેરે દ્વારા લગાવવામાં આવે છે? આ શંકાનું निवा२३ ४२वा सूत्रा२ हे छे 'अणेणबहुविविहवीससापरिणयाए मज्ज जी० ६६ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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