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________________ ५०० जीवाभिगमसूत्रे परिक्षेपेण- परिवेष्टनेन प्रज्ञप्ता सा पद्मवरवेदिका ! 'तीसे णं पउमवर वेइयाए' तस्याः खलु पद्मवरवेदिकायाः 'अयमेयारूवे वष्णावासे पन्नत्ते' अयमेतावद्रूपो वर्णावासः प्रज्ञप्तः कथितः 'तं जहा' तथथा 'वइरामया' वज्रमयी 'निम्मा' नेमिः - परिधिः 'एवं वेइया वण्णओ जहा - रायप सेणईए तहा भाणियच्चो' एवम् - उक्तप्रकारेण वेदिकायाः - पद्मवरवेदिकायाः वर्णको वर्णनं यथा राजप्रश्नीये कृत स्तथैव भणितव्यः । - 'साणं परमवर वेदिया' सा खलु पद्मवश्वेदिका 'एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता' एकेन वनषण्डेन सर्वतः समन्तात् चतुर्दिक्षु संपरिक्षिप्तापरिवेष्टिता ! ' से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्कवाल विवखंभेण वेइयामेण परिक्खेवेणं पण्णत्ते' स खलु वनषण्डः देशोने द्वे योजने चक्रवालविष्कधनुष की चौड़ी है यह एकोरुक द्वीप को चारों आर से घेरी हुई है । 'ती से णं पउमवर वेदियाए' इस प्रद्मवर वेदिका का 'अयमेयारूवे वण्णा वासे' वर्णावास - वर्णन - इस प्रकार से है- 'तं जहा' - जैसे- ' व इरामया निम्मा' नेमि नीव वज्ररत्न की बनी है 'एवं वेइया वण्णओ जहा राय पसेणईए तहा भाणियत्वो' इस वर्णन के सम्बन्ध में कथन 'रायपसेणी' सूत्र में है अतः जैसा इसका वर्णन वहां किया गया है वैसा ही वह सब यहां पर भी इनका वर्णन कर लेना चाहिये । 'साणं परमवर वेदिया एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ता' इस पद्मवर वेदिका के चारों ओर एक वनषण्ड है 'से णं वणसंडे देसूणाई दो जोयणाई चक्क वालविक्खंभे णं वेदिया समेणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते' यह वनषण्ड देशऊन कुछ कम-दो योजन વેદિકાની ઉંચાંઇ આઠ યોજનની છે. અને તેની પહેાંળાઇ પાંચસેા ધનુષની છે. 'गोरु दीव' समता परिक्खेवेणं पण्णत्ता' मा पद्मवर वेहि मे। ३४ द्वीपने थारे मान्लुथी घेरीने रहेली छे. 'तीसेणं पउवर वेदियाए' मा पद्मवर वेहि अनु 'अयमेयारूवे वण्णावासे' वर्षावास - वर्णन मा प्रमाणे छे 'तं जहां' प्रेम 'वइरामया निम्मा' नेमि परिधि वलभय मनेसी छे. 'एवं वेइया वण्णओ जहा रायपसेणईए तहा भाणियच्वो' आना वर्शन संबंधी 'रामप्रश्रीय' सूत्रमां के प्रभाषेनु કથન કરવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે તુ' કથન અહિયાં પણ સમજી લેવુ જોઇએ. 'सा णं पउमबरवे दिया एगेणं वणसंडेणं समंता संपरिक्खित्ता' मा पद्मवर वेहिमानी यारे मान्नु मे वनषड भावेतुं छे. 'से ण' वणसंडे देसूणाई' दो जोयणाई चक्कवाल विक्ख' भेणं वेदिया समेण परिक्खेवेणं पण्णत्ते' भावन જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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