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________________ ४५६ जीवाभिगमसूत्रे पृथिवीति कथ्यते । 'शुद्धपुटवी' शुद्धपृथिवी पर्वतादिमध्ये विधमाना द्वितीया शुद्ध पृथिवीति कथ्यते । 'बालुया पुटवी' बालुका पृथिवी सिकतारूपा पृथिवी, 'मणोसिला पुटवी' मनःशिला लोकप्रसिद्धा चतुर्थी पृथिवी 'सक्करा पुढवी' शर्करा पृथिवी शर्करामुरडरूपा लघुपाषाणखण्डकरूपा पृथिवी पञ्चमी । 'खरपुटवी' खरपृथिवी खरा पाषाणादिरूपा षष्ठी एवं च श्लक्ष्ण बालुका मनः शिलाशकंरा खरा इतिभेदात् पदप्रकारा पृथिवी भवतीति भावः । अधुना श्लक्ष्णादि पृथिवीनां स्थितिनिरूपणार्थमाह-सहा पुढवी णं भंते' श्लक्ष्णपृथिवीना-श्लक्ष्णपृथिवी जीवानां खलु भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं कियत्काल पर्यन्तं स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह- 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्त यावत श्लक्ष्ण हुआ खाये हुए पत्थर में से स्वतः बालुका का चूर्ण होता है 'सुद्ध पुढवी यह पृथिवी पर्वत आदि के मध्य में विद्यमान रहती है 'बालुया पुढवी' बालुका पृथिवी-यह स्वभावतः बालुका के रूप में होती है 'मणोसिला पुढवी' मनः शिला पृथिवी 'खरपुढवी' खरपृथिवी-यह पृथिवी पाषाण आदि रूप होती हैं। इस तरह लक्षण, शुद्ध बालुका, मनः शिला, शर्करा और खर इन छह भेदों वाली पृथिवी होती हैं। अब सूत्रकार लक्षण आदि पृथिवीयों की स्थिति आदि का निरूपण करते हैं इसमें गौतम ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'सण्हा पुढवी गं भंते ! केवइय काल ठिईपण्णत्ता' हे भदन्त ! लक्षण पृथिवी की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! जहन्ने णं अंतो मुहूत्तं उक्कोसेणं एगं वाससहस्स' हे गौतम श्लक्ष्ण पृथिवी मागे पत्थरमाथा चातानी भेणे तीन यूरी - यू। थाय छे. 'सुद्धपुढवी' शुद्ध पृथ्वी, पर्वत विगैरेनी मध्यमा विद्यमान रहे छ. 'वालुया पुढवी' वायु पृथ्वी, मा पृथ्वी स्वालावि पादु२तीन ३५मा हाय छ 'मणोसिला पुढवीं मन:शिस पृथ्वी 'खरपुढवी' ५२ पृथ्वी. मा पृथ्वी पाषाण पत्थर રૂપ હોય છે. આ પ્રમાણે લણ, શુદ્ધ, વાલુકા, મન શિલા, શર્કરા અને ખર આ છ દેવાળી પૃથ્વી હોય છે. - હવે સૂત્રકાર કલર્ણ વિગેરે પૃથ્વીની સ્થિતિ આદિનું વર્ણન કરે છે. આ संमंधमा श्रीगौतमस्वामी प्रभुश्री २ सयुं पूछे छ, 'सण्हा पुढवी णं भंते । केवइय काल ठिई पण्णत्ता' हे भगवन् स पृथ्वीनी स्थिति डेटा अण ની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે 'गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं एगं वाससहरस' हे गौतमा, सक्षण જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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