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________________ ४०६ जीवाभिगमसूत्रे यिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते 'तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति' तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते ? 'पुच्छा' पृच्छा-प्रश्ना, कि मनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते अथवा -देवगतिभ्य आगत्योत्पद्यन्ते इति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'असंखेजवासाउयअकम्मभूमिग अंतरदिवगवज्जेहितो उववज्जति' असंख्येयवर्षायुष्काऽकर्मभूमिकान्तर द्वीपकवर्जेभ्यश्चतुर्गतिभ्य उत्पद्यन्ते, अयं भाव:खेचरपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः नैरयिकेभ्य आगत्य उत्पद्यन्ते, तिर्ययोनिकेभ्यआगत्योत्पद्यन्ते मनुष्येभ्य आगत्योत्पद्यन्ते देवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते किन्तु असंख्येयवर्षायुष्काकर्मभूमिकान्तरद्वीपकमनुष्यतिर्यग्भ्य आगत्य पक्षिषु न समुत्पद्यन्ते तेषां केवल देवगतिप्रापकत्वात् इति ॥ स्थितिद्वारे प्रश्नमाह-'तेसिं गं भंते ! इत्यादि, 'तेसिणं भंते ! जीवाणं' तषां खलु भदन्त ! जीवानां पक्षिणाम् 'केवइयं कालं ठिई आकर के जीव पक्षिरूप से उत्पन्न होते हैं ? 'तिरिक्खजोणिएहितो उव० तिर्यग्योनि में से आकर के जीव पक्षिरूप से उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से आकर के जीव पक्षिरूप से उत्पन्न होते है ! या देवों में से आकर के जीव पक्षिरूप से उत्पन्न होते है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम ! से कहते हैं -'गोयमा ! असंखेज्जवासाउयअकम्मभूमिगअंतर दीवगवज्जेहिंतोउव.' हे गौतम ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिक जीवों को और अन्तर द्वीपज मनुष्य तिर्यश्चों को छोडकर बाकी नैरयिक तिर्यश्च मनुष्य और देवों में से आये जीव पक्षीरूप से उत्पन्न होते हैं केवल असंख्यात वर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिज जीवों से और अंतरद्वीपज मनुष्य तिर्यश्चों से आकर पक्षियों में उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि वे एक देव गति में ही जाने वाले होते हैं तेसिणं भंते ! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' हे भदन्त ! उन तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजंति' तिय योनिमाथी मावीन पक्षि पाथी ઉત્પન્ન થાય છે ? કે દેશમાંથી આવીને જીવ પક્ષિ પણુથી ઉત્પન્ન થાય છે ? ॥ प्रशन उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामी ४ छ । 'गोयमा ! अस खेज्ज वासाउय अकम्मभूमिग अंतरदीवग वज्जेहिं तो उववज्जति' है गौतम ! અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા અકર્મભૂમિના અને અને અંતર દ્વીપ જ મનુષ્ય અને તિર્યંચોને છોડીને બાકીના તૈરયિક તિર્યંચ અને દેશમાંથી આવેલા જ પક્ષી પણાથી ઉત્પન્ન થાય છે. કેવલ અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા અકર્મભૂમિના જીવમાંથી અને અંતરદ્વીપજ મનુષ્ય અને તિર્યોમાંથી આવેલા જીવો પક્ષિઓમાં ઉત્પન્ન થતા નથી. કેમકે તેઓ દેવ ગતિમાંજ જાય છે. 'तेसिं णं भंते ! जीवाणं केवइय' काल ठई पण्णत्ता' हे शन् ! ते જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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