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________________ ३९८ 'खहयर पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं भंते । खेवरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां भद न्त ! 'कइविहे जोणिसंग हे पन्नत्ते' कतिविधः - कतिप्रकारकः योनिसंग्रहः योन्याः संग्रहणं योनिसंग्रह योन्युपलक्षितंग्रहणमित्यर्थः प्रज्ञप्तः - कथित इति । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहे जोणिसंग हे पन्नत्ते' त्रिविध त्रिपकारको योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः । 'तं जहा ' तद्यथा - अंडया पोयया संमुच्छिमा ' अण्डजाः - अण्डाज्जाता मयूरादयः, पोतजाः - वागुल्यादयः, संमुच्छिमाः-खञ्जरीटादयः । ' अंडया तिविहा पन्नत्ता' अण्डजा स्त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः 'तं जहा' तद्यथा - इत्थी पुरिसा नपुंसगा' स्त्रियः पुरुषाः नपुंसकाः ! 'पोतया तिविहा जाता है- 'खहयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते !' हे भदन्त ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का 'कइविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते' योनि संग्रहयोनि रूप से संग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! तिविहे जोणिसंग हे पत्नत्ते' हे गौतम! खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का योनिसंग्रह तीन प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे- 'अंडया, पोयया, संमुच्छिमा' अण्डज, पोतज, और, संमूच्छिम इन में जो अण्डे से उत्पन्न होते हैं वे मयूर आदिक अण्डज हैं जो गर्भ से निकलते ही दौड़ने लगते हैं वे बागुली - चमगादड आदि पोतज हैं और जो माता पिता के संयोग विना ही उत्पन्न होते हैं वे खञ्जरीट पक्षिविशेष आदि संमूच्छिम हैं। 'अंडजा तिविहा 'इन में भी जो अण्डज हैं- वे तीन प्रकार के होते हैं- 'तं जहा' जैसे -' इत्थी, पुरिसा णपुंसगा' जीवाभिगमसूत्रे श्रीगौतमस्वामी अलुने पूछे छे ! 'खहयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया णं भंते !" हे लगवन् । मेयर पथेन्द्रिय तिर्यग्योनि भवानी 'कइविहे जोणिसंगहे पण्णत्ते' ચેાનિસ`ગ્રહ કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमस्वामीने हे छे ! 'गोयमा ! तिविहे जोणिसंगहे पन्नत्ते' हे गौतम! मेयर પચેન્દ્રિય તિય ગ્યેાનિક જીવાના ચેાનિસંગ્રહ ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં આવેલ છે. 'तं' जहा' ते त्र प्रहार या प्रमाणे हे 'अंडया, पोयया, समुच्छिमा २०४ પેાતજ અને સ’સૂચ્છિ`મ આમાં જેએ ઇડાઓમાંથી ઉત્પન્ન થાયછેતે એ અડજ કહેવાય છે. જેમકે માર વગેરે જેએ ગર્ભમાંથી બહાર આવતાજ દોડવા મ'ડે છે. તેવા વાગેાળ વિગેરે પાતજ કહેવાય છે.અને માતાપિતાના સંચેગ વગર જ ઉત્પન્ન થાય છે. તેવા ખંજરીટ-પક્ષિવિશેષ જીવેા સમૂમિ કહેવાય છે. ' अंडजा तिविहा' सभां पशु मेमो मड अारना होय छे. 'तं जहा' प्रेम 'इत्थी पुरिसा होय छे, तेथ्यो त्रशु ngam' al, yşı, 42 જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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