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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२ सू.१७ नारकजीवोत्पातनिरूपणम् २१९ असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते नो सरीसृपेभ्य उत्पद्यन्ते किन्तु पक्षिभ्य उत्पद्यन्ते यावन्मत्स्य मनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते' 'पंकप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया, किं असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहिंतो उववज्जति? गोयमा ! नो असन्नीहितो उवव ज्जंति, नो सरीसि वेहिंतो उववज्जति, नो पक्खीहितो उववज्जंति, चउप्पएहितो उववज्जति । 'पङ्कप्रभायां खलु भदन्त ! पृथिव्यां नैरयिकाः किम् असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते यावन्मत्स्यमनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते, गौतम नो असंज्ञिभ्य उत्पद्यन्ते नो सरीसपेभ्य उत्पद्यन्ते नो पक्षिम्य उत्पद्यन्ते किन्तु चतुष्पदेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ एवमुत्तरोचर उत्तर प्रभु कहते हैं हे गौतम! बालुकाप्रभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक 'नो असण्णीहितो उववज्जति सरीसिवेंहिंतो उववज्जति' असंज्ञी जीवों में से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं, और न सरीसृपों में से आकर के उत्पन्न होते हैं किन्तु 'पक्खीहिंतो उववज्जंति, संज्ञी पक्षियों में से आकर के उत्पन्न होते हैं। 'जाव मच्छमणुएहितो उववज्जति' यावत् मत्स्य और मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं। 'पंकप्पभाएणं भंते ! पुढवीए नेरइया किं असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहितो उववज्जंति' हे भदन्त ! पङ्कप्रभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक क्या असंज्ञी जीवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं? या यावत् मत्स्य में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से आ कर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! पङप्रभा पृथिवी के नरकावासों में नैरयिक असंज्ञी जीवों में से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं सरीसृपों में से पृथ्वीना न२७पासोमा नायि। 'नो असण्णीहितो उववज्जति नो सरीसिवेहिंतो उववजंति' असशी वामांथी मापीर पन्न यता नथी. तभन्न सशसयामाथी भावी२ ५५ ५-न यता नथी. ५२'तु 'पक्खीहितो ! उवव. जति' सज्ञी पक्षियोमाथी भावीन पन्नाय छे 'जाव मच्छमणुएहितो उवव. जंति' यावत् भस्य अने मनुष्यामाथी मावीने अपन्न थाय छे. 'पंकप्पभाए णं भंते ! पुढवीए नेरइया किं असण्णीहितो उववज्जति जाव मच्छमणुएहितो उववज्जंति' हे मान्! ५४मा पृथ्वीना नापासामा उत्पन्न वावा नयि। શું અસંસી છમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ ! પંકપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા નરયિકે અસંજ્ઞી જમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. તેમજ સરીસૃપોમાંથી આવીને પણ ઉત્પન થતા નથી. પરંતુ ચોપગાં સિહોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, યાવત્ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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