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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२ सू. १३ नरकावाससंस्थाननिरूपणम् __१८१ 'गोयमा'हे गौतम ! तिन्नि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ता' त्रीणि योजनसहस्राणि बाहल्येन नरकाः प्रज्ञप्ता:-कथिता इति । 'तं जहा' तद्यथा-हेढा घणा सहस्सं' अधस्तने पादपीठे घनानिचिताः सहस्रम् योजनसहस्रम् 'मज्झे सुसिरा सहस्सं' मध्ये पीठस्योपरि मध्यभागे सुषिराः सहस्रं योजनसहस्रम् 'उपि संकुइया सहस्सं' उपरि संकुचिताः शिखराकृत्या संकोचमुपगता योजनसहस्रम् तत एवं सङ्कलनया नरकावासानां त्रीणि योजनसहस्राणि बाहल्यतो भवन्तीति । 'एवं जाव अहे सत्तमाए' एवं यावदधःसप्तम्याम् एवं शर्कराप्रभात आरभ्य सप्तमपृथिवी पर्यन्तम् । पतिपृथिव्या नरकावासानां त्रीणि सहस्राणि बाहल्येन भवन्तीति ज्ञातव्यानि । तदुक्त मन्यत्रापि 'हेढा घणासहस्स, उपि संकोचतो सहस्सं तु । मझे सहस्सं सुसिरा, तिनि सहस्सुस्सिया नरया' ॥१॥ तिमि जोयणा सहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ता' हे गौतम ! ये नरक तीन हजार योजन की मोटाई वाले कहे गये हैं। 'तं जहा' जैसे-'हेट्ठा घणासहस्सं' ये अधस्तनपादपीठ में एक हजार योजन तक घनरूप से निचित है। 'मज्झे सुसिरा सहस्सं' पीठ के ऊपर में मध्यभाग में ये एक हजार योजन तक सुषिर (खाली) हैं तथा-'उपि संकुइया सहस्सं' ऊपर में शिखर के जैसे एक हजार योजन तक ये संकुचित होते गये हैं। इस प्रकार से ये मोटाई में तीन हजार योजन के हो जाते है। 'एवं जाव अहे सत्तमाए' इसी तरह से शर्कराप्रभा से लेकर अधःसप्तमी पृथिवी तक हर एक पृथिवी में वहां के नरकावासों की मोटाई तीन २, हजार योजन की है-ऐसा जानना चाहिये, अन्यत्र भी ऐसा ही कहा गया है'गोयमा! तिन्नि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पन्नत्ता' हे गौतम! भा न२४३ तर योगनी विशालता वा ४९सा छे. 'तं जहा' ते माप्रमाणे 'हेद्वा घणसहस्सं ते नीयनी पापी मां २ योन सुधी धनपणाथा लयित-नाम २९॥ छ. 'मज्झे सुसिरा सहस्सं' पी81 8५२ना मध्य भागमा त मे उन२ यापन सुधा सुषिर (मासी) छ. तथा 'उप्पि संकुइया सहरसं' ઉપરમાં શિખરના જેવા એક હજાર યોજન સુધી તે સંકુચિત થતા ગયા છે. ॥ शत मा विशणताwia १२ यराना जय छे. 'एवं जाव अहे સરમાણ આજ પ્રમાણે શર્કરા પ્રભાં પૃથ્વીથી લઈને અધ:સપ્તમી પૃથ્વી સુધી દરેક પૃથ્વીમાં ત્યાંના નરકાવાસોની વિશાળતા ત્રણ હજાર યોજનની છે, તેમ સમજવું અન્યત્રપણ એમજ કહ્યું છે. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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