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________________ जीवाभिगमसूत्रे एवं तद्वत् संस्थिता इति पटहसंस्थिताः १७ 'मेरी संठिया' भेरी ढका तद्वत् संस्थिता इति भेरी संस्थिताः १८ 'झल्लरि संठिया' झल्लरि संस्थिता: झल्लरि-चौवनद्धा विस्तीर्णवलयाकारा वाद्यविशेषरूपा तद्वत संस्थिता इति झल्लरि संस्थिताः १९ 'कुत्धुंबग संठिया' कुस्तुम्बकः-वाद्यविशेष स्तद्वत् संस्थिता इति कुस्तुम्बक-संस्थिता: २० 'नाली संठिया' नाडी-घटिका तद्वत् संस्थिता इति नाडीसंस्थिताः २१ नरका रत्नप्रभायामिति । अत्र द्वे संग्रहगाथे-'अयकोट १ पिटुपयणग-२ कंद ३ लोही ४ कडाह ५ संठाणा । थाली ६ पिटरग ७ किष्णग ८उडए ९ मुरवे १० मुयंगे य ११ ॥१॥ नदि मुयंगे १२ आलिंग १३ सुघोसे १४ दद्दरे १५ य पणचे १६ य । पडहग १७ मेरी १८ झल्लरि १९ कुत्थु बग२० नाडि संठाणा' ॥२॥ ___अयः कोष्ठक-पिष्टपचनक-कन्दु-लौहि-कटाह-संस्थानाः । स्थाली-पिठ रक-कीर्णक-उटजो मुरजो मृदङ्गश्च ॥१।। नन्दिमृदङ्गः आलिङ्गः सुघोषः दरश्च पणवश्च । पटहक-भेरी झल्लरि कुत्थु वग नाडीसंस्थानाः इति ॥ _ एवं जाव तमाए एवं' यावत तमाममा पर्यन्तम् । एवं यथा रत्नप्रभाया नरका: कथिता स्तथैव शर्कराप्रभा बालुकाप्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभानामपि नरका के जैसे आकार वाले है। कितनेक 'भेरी संठिया' भेरी नामक वाद्य विशेषके जैसे आकार वाले हैं कितनेक 'झल्लरी संठिया' चमडे से मडी हुई विस्तीर्ण वलयाकार झल्लरी नामक वाद्य विशेष के जैसे आकार वाले हैं। 'कुत्थुवग संठिया' कितनेक कुस्तुंवक वाद्य विशेष के जैसे आकार वाले हैं। कितनेक 'नाडी संठिया' नाडी -जल घटिका के जैसे आकार वाले हैं २१। यहां दो संग्रह गाथाएं हैं'अयको?' इत्यादि, इनका अर्थ उपर प्रमाण समझलेवें।। ___ 'एवं जाव तमाए' जिस प्रकार से रत्नप्रभा के नरक कहे गये हैं उसी तरह से तमा पृथिवी तक कह देना चाहिये जैसे- शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा और तमःप्रभा के नरकों का भी कथन छ. 3मा 'झल्लरी सठिया याभाथी भी विस्तृत मायान मार Pा आसर नाभना वाचविशेषनारा २ मा छे 'कुत्थुवगसठिया' मा पुस्तुम वाचविशेषना २ मा २१॥ छ 'नाडी सठिया' નાડી જલઘટિકાના જેવા આકારવાળા છે. ૨૧ આ સંબંધમાં બે સંગ્રહ भाया छ. 'अयको?' त्या माना गय ५२ ४९८ प्राथी सम सेवा. 'एवं जाव तमाए' २ प्रमाणे २त्नमा पृथ्वीना नर डेटा छे. એજ પ્રમાણે તમા નામની પૃથ્વી સુધી કથન કરવું જોઈએ. અર્થાત- શર્કરા પ્રભા વાલુકાપ્રભા પંકપ્રભા, ધૂમપ્રભા, અને તમ:પ્રભાના નરકેનું પણ કથન જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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