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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.१० प्रतिपृथिव्याः उपर्यधस्तनचरमान्तयोरन्तरम् १२५ श्वरमान्तः, अशीतिसहस्रयोजनोत्तरैकयोजनशतसहस्रमन्तरं भवति, अब्बहुलकाण्डाधस्तनचरमान्तस्य घनोदध्युपरितनचरमान्तस्य च परस्परं संलग्नतया उभयत्रापि तुल्यममाणत्वादिति । 'हे ठिल्ले चरिमंते दो जोयणसयसहस्साई' घनोदधेरधस्तनचरमान्त:-रत्नप्रभोपरितनचरमान्तात् द्वे योजनशतसहस्रे लक्ष द्वययोजनमन्तरं भवति । घनोदधेविंशतिसहस्रयोजनप्रमाणत्वात् । अयं भाव:अशीतिसहस्रयोजनोत्तरैकशतसहस्त्र (१८००००) योजनप्रमिते रत्नप्रभा पृथिवी बाहल्यं घनोदधेविंशतिसहस्रयोजनानां (२००००) संमेलने भवतः द्वे योजन. शतसहस्र, इतो रत्नप्रभा पृथिव्या उपरितनचरमान्तात् घनोदधेरधस्तन चरमान्तस्य का रत्नप्रभा पृथिवी का बाहल्य -पिण्ड हो जाता है। 'घणोदहिस्स उवरिल्ले चरिमंते असीइ उत्तर जोयणसयसहस्सं' रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से घनोदधि के उपरितन चरमान्त भी एक लाख अस्सी हजार योजन का अन्तर वाला है क्योंकि अब्बहुलकाण्ड का जो अधस्तन चरमान्त है वह और घनोदधि का जो उपरितन चरमान्त है वह आपस में मिले हुए है इस कारण इनमें आपस में अन्तर आता नहीं है। ‘हेठिल्ले चरिमंते दो जोयणसयसहस्सं घनोदधि वलय का जो अधस्तन चरमान्त रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त इन दोनों में दो लाख योजन का अन्तर है क्योंकि घनोदधि का प्रमाण बीस हजार योजन का होता है। तात्पर्य यह है कि-रत्नप्रभा प्रथिवी के एक लाख अस्सी हजार योजन के बाहल्य मे घनोदधि बाहल्य के बीस हजार योजन मिलाने से दो लाख योजन हो जाते है इसलिये रत्नप्रभा के उपरितन चरमान्त से घनोदधि का अधस्तन चरमान्त दो 'घणोदहिस्स उवरिल्ले चरिमंते असीइ उत्तर जोयणसयसहस्सं' रत्नमानी ઉપરનું ચરમાંત પણ એક લાખ એંસી હજાર એજનના અંતરવાળું છે. કેમકે અખૂહલકાંડની નીચેનો જે ચરમાંત છે તે અને ઘનોદધિની ઉપરને જે ચરમાન્ત છે. તે અન્ય મળેલા છે. તે કારણથી તેનામાં અંતર આવતું नथी. 'हेदिल्ले चरिमंते दो जोयणसयसहस्सं' धनाधि पसयन अस्तन નીચેને ચરમાંત, અને રત્નપ્રભા પૃથ્વીની ઉપરના ચરમાન્ત આ બન્નેમાં બે લાખ જનનું અંતર છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે રત્નપ્રભા પૃથ્વીને એક લાખ એંસી હજાર એજનના બાહલ્યમાં ઘોદધિના બાહથના વીસ હજાર જન મેળવતાં બે લાખ યોજન થઈ જાય છે. તેથી રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપરના અરમાન્તથી જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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