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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ९० सूर्याभदेवस्य गन्धादिधारणवर्णनम् कुंडलाइ चूडामणि मउडं पिणद्धेइ, पिणद्धित्ता-गंथिमवेढिम - पूरिमसंघाइमेण चउव्विणं मल्लेणं कप्परुक्ख पिव अप्पाणं अलंकिय विभूसिय करेइ, करिता दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गायाइं भुखंडेइ, दिव्वं च सुमणदामं पिणखेड || सु० ९० ॥ छाया - ततः खलु तस्य सूर्याभस्य देवस्य सामानिकपरिषदुपपन्नका अलङ्कारिकभाण्डम् उप स्थापयन्ति । ततःखलु स सूर्याभो देवस्तत्प्रथमतया पक्ष्मलसुकुमारया सुरभ्या गन्धकाषाय्या एकया शाट्या गात्राणि रुक्षयति, रूक्षयित्वा सरसेन गोशीर्षचन्दनेन गात्राणि अनुलिम्पति, अनुलिप्य नासानिः श्वासवातवजयं चक्षुरं वर्णस्पर्शयुक्तं हयलालापैलवातिरेकं धवल कनकखचिता'तणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स' इत्यादि । सूत्रार्थ - (तएण ) इसके बाद ( तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणिय परिसोववनगा ) उस सूर्याभदेव के सामानिक परिषदुपपन्नक देवोंने ( अलंकारियमंड उबडवेंति) अलंकारिक भाण्डको आभरणकरण्डकोंको उपस्थित किया. (तएण से सूरिणाभे देवे तप्पढमयाए पम्हलसमालाए सुरभीए गंधकासाईए एगाए साडीए गायाई लहेइ) इसके बाद सूर्याभदेवने सर्वप्रथम रोमयुक्त, सुकोमल वस्त्रखंडविशेष से शरीर को पोंछा, यह वस्त्रखंड सुगंध से युक्त था. तथा गंध प्रधान कषायरंगसे रंगी हुई थी, (लहित्ता सरसेण गोसीसचंदणेणं गायाई अणुर्लिपइ) शरीर को पोंछने के बाद फिर उसने सरस गोशीर्षचन्दन से शरीरको अनुलिप्त चर्चित किया, (अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोज्यं चवखुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालपेलवातिरेगं धवलं कणगतए णं तस्स सूरियाभस्स देवरस " इत्यादि । 66 सूत्रार्थ – (तएणं त्या२ पछी ( तस्स णं सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा ) ते सूर्यालद्देवना सामानि परिषहुपपन्न हेवा ( अलंकारियभंड उबवेंति ) लांडोने आमरण ४२उने उपास्थित अर्या. (तएणं से सूरियाभे देवे तपढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए एगाए साडीए गायाई लूहेइ ) त्यार पछी सूर्यालदेवे सौ पहेला रोभयुक्त सुडामण वखना ४४डाथी શરીર લૂછ્યું. આ વસખંડ સુગ ́ધ યુક્ત તેમજ ગંધ પ્રધાન કષાય રંગથી રંગેલા हतो. (लहित्ता सरसेण गोसीसच दणेणं गायाई अणुविषइ ) शरीर सूछया जाह तेथे सरस गोशीर्ष यन्हनथी शरीरने अनुलिप्स - यर्थित ४ ( अणुर्लिपित्ता' नसानसासवायवोज्झं चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलाल पेलवातिरंगें धवलं कणगख - શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર ઃ ૦૧ ६१३
SR No.006341
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1990
Total Pages718
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size39 MB
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