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________________ २४ औपपातिकसत्रे गंधगंधिए गंधवटिभूएणड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्टिय-वेलंबग-पवगकहग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तृणइल्ल तुंबवीणिय-भुयगमागह-परिगए बहुजणजाणवयस्स विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स गंधिए' सुगन्धवरगन्धगन्धितम्-नानाविधपुष्पसम्पादितगन्धद्रव्यैः सुवासितम्। 'गंधवट्टिभूए' गन्धवर्तिभूतं गन्धद्रव्यगुटिकासदृशम्-सौरभ्यातिशयात् गन्धद्रव्यनिर्मितवद् भासमानम् । ‘णटणट्टगे'-त्यादि, अत्रैव प्रथमसूत्रे व्याख्यातम् , नवरम्-'भुयगमागहपरिगए' भोजकमागधपरिगतम् , भोजकाः-सेवकाः मागधाःस्तुतिपाठकाः, तैः परिगतं व्याप्तम् । 'बहुजगजाणवयस्स विस्सुयकित्तिए' बहुजनजानपदस्य सुगंधि से सुशोभित बना रहता था । (सुगंधवरगंधिए ) अनेक प्रकार के सुगंधित पुष्पों की गंध से भी वह सदा सुवासित होता रहता था (गंधवहिभूए) इसलिये यह गंधकी बत्ती जैसा हो रहा था। ऐसा ज्ञात होता था कि यह सुगंधित द्रव्यों के चूर्ण से ही मानो विरचित किया गया है। (णड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबय-इत्यादि ) नृत्य करने वालों से, नाटक करने वालों से, डोरी पर नाचने वालों से, मुष्टियुद्ध करने वालों से, बंदर की तरह कूदने वालों से, भांड के जैसी नकल करने वालों से, तथा कहानी कहने वालों से, रास रचने वालों से, शुभा शुभ प्रकट करने वालों से, वांसके अग्रभाग पर खेलने वालों से, चित्रपट दिखला कर आजीविका करने वालों से, वीणा बजाने वालों से, तुंबी बजाने वालों से, भोजकों-सेवकों से, और मागधों-स्तुतिपाठकोंसे वह मंदिर सदा युक्त बना रहता था । (बहुजणजाण तु. (सुगंधवरगंधिए ) अने प्रा२नां सुअधित पुष्पानी अधथी ५ ते भेश सुवासित थ६२ तु. (गंधवट्टिभूए) मेथी ते अनावाती થઈ રહ્યું હતું. એમજ લાગતું હતું કે એ સુગંધિત દ્રવ્યના ચૂર્ણથી જ જાણે मनायूछे. (णड-गट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्टिय-वेलंबय-इत्यादि ) नृत्य ४२नारामाथी, નાટયકારેથી, દોરા ઉપર નાચવાવાળાઓથી, મુષ્ટિયુદ્ધ કરનારાઓથી, વાંદરાની પેઠે કૂદવાવાળાએથી, ભાંડ (ભવાયા) જેવી નકલ કરવાવાળાએથી, તથા વાર્તા કહેવાવાળાએથી, રાસ કરનારાઓથી, શુભાશુભ પ્રકટ કરનારાઓથી, વાંસની ટોચ પર રમનારાઓથી, ચિત્રપટ દેખાડીને આજીવિકા કરવાવાળાએથી, વીણા વગાડનારાઓથી, તંબુર વગાડનારાઓથી, ભેજકે–સેવકેથી અને भागधे।-स्तुतियाअथी ते माहिर सहा १२५४ २ तु. ( बहुजणजाण
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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