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________________ ७१६ औपपातिकसूत्रे मृलम्-ईसीपब्भराए णं पुढवीए सेयाए जोयणंमि लोगंते । तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो.सादिया कमनीया, 'पडिरूवा' प्रतिरूपा-दर्शने प्रतिक्षणं नवं नवमिव प्रतिभासमानं रूपं यस्याः सा तथा ॥ सू० १०५ ॥ टीका-'इसीपब्भाराए' इत्यादि । 'ईसीपब्भराए गं' ईषत्प्राग्भारायाः सिद्धशिलायाः खलु 'पुढवीए सेयाए' पृथिव्याः श्वेतायाः 'जोयणंमि लोगंते' योजने लोकान्तः= योजनपरिमितं क्षेत्रमुपरि गत्वा लोकान्तो वर्तते । अत्र योजनम्-उत्सेधाङ्गुलयोजनं ग्राह्यम्, तदीयस्यैव हि क्रोशषड्भागस्य सत्रिभागत्रयस्त्रिंशदधिकधनुःशतत्रयीप्रमाणत्वादिति । 'तस्स जोयणस्स' तस्य योजनस्य, 'जे से' यः सः 'उवरिल्ले' उपरितनः 'गाउए' देशीयोऽयं शब्दः क्रोशार्थे, स च द्विसहस्रधनुःप्रमाणं क्षेत्रम् , उक्तं च-" चउहत्थं पुण धनुहं दुनि सहस्साइ गाउयं तेसिं" ॥ इति । 'तस्स णं' तस्य खलु 'गाउयस्स' क्रोशस्य, 'जे से उवरिल्ले' यः स उपरितनः 'छब्भाए' षड्भागः षष्ठो भागः, 'तत्थ णं सिद्धा भगवंतो इसे देखने वालों के नेत्र इसे देखते २ थकते नहीं हैं। यह बड़ी ही कमनीय है। इसे ज्यों ज्यों देखा जाता है त्यों २ यह नवीन२ जैसी प्रतीत होती है । सू० १०५ ॥ 'ईसीपब्भाराए णं पुढवीए' इत्यादि। इस (ईसीपब्भाराए णं पुढवीए सेयाए)शुभ्र ईषत्प्राग्भारा पृथिवी से (जोयणमि) ऊपर १ योजन में (लोगंते) लोक का अंत है । (तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो सादिया अपज्जवसिया) उस योजनपरिमित लोक के अंत में ३३३ धनुष और ३२ अंगुल जितनी जगह रही है, उसमें अर्थात् उस योजन के ऊपर के कोस के छठवें भाग में सिद्ध भगवान् બહુ જ કમનીય છે, તેને જેમ જેમ લેવાય તેમ તેમ તે નવીન નવીન જેવી प्रतीत थाय . (सू० १०५) 'ईसीपब्भाराए णं पुढवीए' त्याहि. मा (ईसीपब्भाराए णं पुढवीए सेयाए ) शुभ्र धपत्याउमा पृथिवीथी ( जोयणंमि ) 3५२ १ थानमा (लोगते ) ने मत छे. (तस्स जोयणस्स जे से उवरिल्ले गाउए, तस्स णं गाउयस्स जे से उवरिल्ले छब्भागे, तत्थ णं सिद्धा भगवंतो सादिया अपज्जवसिया चिर्सेप्ति ) ते योगनपरिभित सोना અંતમાં ૩૩૩ ધનુષ અને ૩૨ આંગળ જેટલી જગા રહી છે, તેમાં અર્થાત
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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