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________________ ६४४ औपपातिकसूत्रे एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ करणकारावणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ पयणपयावणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया, एगच्चाओ कोहण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह विरताः 'एगचाओ करणकारावणाओ' एकस्मात्करणकारणात् =स्वयम् नुष्टानं करणं, प्रेरणया परहस्तात्कारणम् , तयोःसमाहारः, तस्मात् 'पडिविरया' प्रतिविरताः, 'जावजीवाए ' यावजीवम् , 'एगचाओ अपडिविरया' एकस्मादप्रतिविरताः गज्ञामाज्ञादिभिः कारणैः । 'एगचाओ पयणपयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए' एकस्मात्पचनपाचनात्-पचनं स्वहस्तात्पाककरणं, पाचनं-परद्वारेण, तस्मात्प्रतिविरताः यावजीच, 'एगचाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया' एकस्मात् पचनपाचनादप्रतिविरताः। 'एगचाओ कोट्टणपिट्टण-सज्जण-तालण-वह-बंध-परिकिळेसाओ' एकस्मात्कुट्टन-पिट्टन-तर्जन-ताडन विरया जावज्जीवाए ) ऐसे ही वे स्थूल आरंभ--समारंभ से ही जीवनपर्यंत विरक्त रहते हैं, सूक्ष्म आरंभसमारंभ से नहीं। (एगचाओ करणकारावणाओ पडिविरया) कोई ऐसे हैं जो केवल स्वयं करने से एवं दूसरों से कराने से जीवनपर्यन्त विरत रहते हैं, (एगच्चाओ अपडिविरया) कोई ऐसे हैं जो राजाकी आज्ञा-आदि के कारण इनसे प्रतिविरत नहीं हैं, ( एगच्चाओ पयण-पयावणाओ पडिविरया जावजीवाए ) कोई २ ऐसे हैं जो पचन-पाचन क्रिया से जीवन पर्यन्त विरत हैं। (एगचाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया) कोई २ ऐसे हैं जो इन पचन-पाचनादि क्रियाओं से विरत नहीं हैं । ( एगच्चाओ समारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए) तभ०४ ते २८ मार-मार लथी પણ જીવનપર્યન્ત વિરક્ત રહે છે, સૂક્ષ્મ આરંભ–સમારંભથી વિરક્ત નથી रहेता. (एगच्चाओ करणकारावणाओ पडिविरया) सेवा छ ? ४२वा साथी बन५ त विरत डाय छे. (एगच्चाओ अपरिविरया) पाछे ? शनी माज्ञा माहिना पारणे तेनाथी प्रतिविरत होता नथी, (एगच्चाओ पयणपयावणाओ पडिविरया जावज्जीवाए) सेवा छरे पयन-पायन लियाथी नयंत विरत छ. (एगच्चाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया) अध કઈ એવા છે કે જે આ પચન-પાચન આદિ કિયાએથી વિરસ નથી. (एगच्चाओ कोट्टण-पिट्टण-तज्जण-तालण-वह-बंध-परिकिलेसाओ पडिविरया
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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