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________________ . . . . औपपातिकसत्रे जण-मणुस्सा हलसयसहस्स-संकि-विकि-लह-पण्णत्त-सेउसीमा बस्तुसौलभ्यात्प्रमोदमाननिखिलजनेति यावत् । 'आइण्णजण-मणुस्सा' आकीर्णजनमनुष्या, संख्यातिरेकात् संकुलतया परस्परोप-नंघटितमनुष्यप्राणिपरिपूर्णेत्यर्थः । अत्र जनेति आतसामान्यवाचित्वात्प्राणीति निर्वक्ति, ततो मनुष्यश्चासौ जनश्चेति कर्मधारये राजदन्तादीनामाकृतिगणत्वात् मनुष्यशब्दस्य परप्रयोगः, तेन आकीर्णा व्याप्ता-आकीर्णजनमनुष्या, आर्थत्वात्-आकीर्णशब्दस्य पूर्वप्रयोगः, 'हलसयसहस्स-संकिट-विकिट-लट-पण्णत्तसेउसीमा' हलशतसहस्रसंकृष्टविकृष्टलष्टप्रज्ञप्तसेतुसीमा, शतानि च सहस्राणि च शतसहस्राणि, हलानां शतसहस्राणि, अथवा शतमितानि सहस्राणि लक्षमिति यावत् , तैर्हलशतसहस्रैः संकृष्टा विकृष्टा द्विवारं कृष्टा त्रिवार कृष्टा अत एव लष्टा-मृष्टा प्रतनूकृतलोष्टा मनोज्ञा प्रज्ञप्ता= इयमस्य कर्षकस्ये'-ति निर्दिष्टा सेतुसीमा क्षेत्रपालीरूपा सीमा यस्यां सा तथा, सेतुभङ्गे कृषीवलानां सीमाविवादो मा भूदिति सेतुसीमा प्रज्ञप्ता, इति भावः, बने हुए थे। (आइण्ण-जण-मणुस्सा) यहां की मेदिनी (भूमि) सदा अधिक से अधिक मानवजनसंख्या से आकीर्ण बनी रहती थी-मार्गों पर बडी भीड़ लगी रहती थी । (इससयसहस्स-संकिट-विकिष्ट-ल-पण्णत्त-सेउसीमा) यहां की भूमि सैकडों अथवा हजारों अथवा लाखों हलों द्वारा जोती जाती थी, दो तीन बार जुतने से खेतों की मिट्टी बिलकुल पिस सी जाती थी, प्रायः वह कंकर पत्थर रहित थी, इससे वह बहुत ही मनोज्ञ प्रतीत होती थी । 'यह इस कर्षक की भूमि है, यह इस कर्षक की भूमि है' इस प्रकार से वहां प्रत्येक किसान के खेतकी सीमा निर्धारित मेडद्वारा करने में आई थी। खेत में मेडद्वारा सीमा निर्धारित यदि न की जाय तो इससे किसानों में अपने खेत की सीमा के बारे में अनेक प्रकारसे विवाद उपस्थित हो जाता આથી અહીંના સમસ્ત નાગરિક જન તેમજ બાકીના બધા દેશનિવાસી મનુષ્ય 'सहा मान भी भय थयेसा ता. (आइण्णअण-माणुस्सा) २डी नी भूमि सहा धारेने पधारे भानन भ्याली मरी २ती ती. (हलसयसहस्स-संकिटू-विकिट्र-लट्र-पण्णस-सेउसीमा) माडी नी भूमि से ४ हुन। અથવા લાખો હળથી ખેડાતી હતી. બે ત્રણ વાર ખેડવાથી ખેતરોની માટી બિલકુલ પીસાઈ જતી હતી. મુખ્યતઃ કાંકરા પત્થર રહિત હતી તેથી તે ઘણું જ મને પ્રતીત થતી હતી. “આ આ ખેડૂતની ભૂમિ છે, આ આ ખેડૂતની ભૂમિ છે એ પ્રકારે ત્યાં પ્રત્યેક ખેડૂતના ખેતરની સીમા મેડ-સીમાચિહ્ન દ્વારા નકકી કરવામાં આવી હતી. ખેતરમાં મેડ–સીમાચિહ્ન દ્વારા જે નકકા ન કરવામાં આવે તો તેથી ખેડૂતેમાં પિતપતાના ખેતરની સીમાના અનેક
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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