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________________ ६०६ औपपातिकसूत्रे इत्यत्र प्रहेलियं २९, मागहियं २२, गाहं २३, गीइयं २४, सिलोयं २५, 'आभरण चिहिं' समवायाङ्ग - ज्ञाता - राजप्रश्नीय - जम्बूद्वीपप्रप्तिवर्णितस्य 'वत्थवि' इत्यस्य, तथा ज्ञाता - राजप्रश्नीय- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिकयितस्य 'विलेवणविहिं' इत्यस्य च समावेशः १८, 'सयणत्रिहिं' शयनविधि - शय्यापर्यङ्कादिविधिज्ञानम् १९, 'अज्जं ' आर्यां=मात्राछन्दोरूपां मात्रामंमेलनेन छन्दोनिर्माणविज्ञानम् २०, ' पहेलियं ' प्रहेलिकां = गूढाशय गद्यपद्यमयी रचनाम् २१, ' मागहिये मागधिकां= मगधदेशीयभाषा कवित्वम् २२, 'गाई' गाथां = संस्कृतेतरभाषानिबद्धामार्यामेव, कलिङ्गादिदेशभाषानिबद्ध कवित्वविज्ञानं वा २३, 'गीइयं' गीतिकां = पूर्वार्धसदृशोत्तरार्धलक्षणरूपाम् २४, ‘सिलोयं' श्लोकम्=अनुष्टुबादिलक्षणम् २५, 'हिरण्णजुति' हिरण्ययुक्ति= रजतनिर्मा की, (१८ आभरणविहिं) आभरण आदि को बनाने एवं उन्हें यथास्थान धारण करने की, समवायाङ्ग, ज्ञाता, राजप्रश्नीय और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में उक्त 'वत्थविहिं' वस्त्रविधि का, ज्ञाता, राजप्रश्नीय तथा जम्बूद्वीप में उक्त 'विलेवण विहिं' विलेपनविधि का समावेश यहीं पर हो जाता है; (१९ सयणविहिं ) शय्या आदि बनाने की, (२० अज्जं ) आर्याछन्द-मात्रिक छंदों को रचने की, ( २१ पहेलियं) प्रहेलिका की, अर्थात् गूढ़ आशयवाली गद्यपद्यमयी रचना करने की. (२२ मा गहियं) मागधिकाकी अर्थात् मगध देशकी भाषा में कविता रचने की, (२३ गाहं) संस्कृत से भिन्न भाषा में मात्रिक छन्दो में कविता रचने की, अथवा कलिंग आदि देशों की भाषा में निबद्ध कविता के विज्ञान की, ( २४ गीइयं) पूर्वार्ध के सदृश उत्तरार्ध लक्षणरूप गीतिका छन्द में काव्य रचने की, (२५ सिलोयं) अनुष्टुप् आदि छन्दों में श्लोकों को रचने की, ( २६ हिरण्णजुत्ति) चाँदी बनाने की विधि की (२७ सुत्र(आभरणविहिं) समरशु आदि मनाववानी, समवायांग, ज्ञाता, राप्रश्नीय रमने मंजूदीय प्रज्ञप्तिमा उत ' वत्थविहिं ' वस्त्रविधिनो, भने ज्ञाता, रा४પ્રશ્નીય અને સમવાયાંગમાં ઉક્ત 'विलेवणविहिं' विद्वेधनविधिन। સમાવેશ અહી જ કરવામાં આવ્યેા છે. १८ ( सयणविहिं ) મ્યા આફ્રિ मनाववानी, २० ( अज्जं ) आर्या ६६- मात्रि४-छ हो रयवानी, २१ (पहेलियं) अहेसानी अर्थात् गूढ આશયવાળી ગદ્યપદ્યમયી રચના रवानी, २२ (मागहियं) भागधी अर्थात् भगध देशनी लाषाभां विता २न्यवानी, २३ (गाहं) संस्कृतथी छुट्टी भाषाभां भात्रि छ होमां उविता रथવાની, અથવા કલિંગ આદિ દેશની ભાષામાં રચિત કવિતાના વિજ્ઞાનની, २४ (गीइयं) पूर्वार्धना प्रेम उत्तरार्धं सक्षण ३५ गीतिमा छद्धभां अन्य २न्यवानी, २५ (सिलोयं) अनुष्टुप मा छ होमा हो रथवानी, २६ (हिर ,
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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