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________________ औपपातिकमरे माध्ययनस्य प्रथमोदेशके-' एवमेगेसिं णो णायं भवइ--अस्थि मे आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओक्वाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुए इह पेचा भविस्सामि ?' इत्यादि, अन्नाऽऽचाराङ्गसूत्रे यदात्मन औपपातिकत्वमुपात्तम् तदेवाऽत्र प्रतन्यते, तेन तदुपदिष्टार्थस्य सविस्तरं पुष्टिकरणरूपं सामीप्यमिह वर्तते, अत एवाचाराङ्गोपाङ्गता सिध्यति । अस्योपाङ्गस्य अयमुपोद्घातः---- मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी टीका-'तेणं कालेणं' इत्यादि। 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' इसे उपांग इसलिये कहा है कि यह आचारांगसूत्रका समीपवर्ती है, अर्थात् आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देश में "एवमेगेसि णो णायं भवइ-अस्थि में आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुए इह पेचा भविस्सामि ?" अर्थात्-किन्ही किन्ही जीवों को यह ज्ञान नहीं होता कि मेरा आत्मा उत्पत्तिशील है या मेरा आत्मा उत्पत्तिशील नहीं है ? मैं पहले कौन था और यहांसे मरकर परलोक में कौन होऊँगा ?, इत्यादि सूत्र जो कहा है, और इसमें आत्मा के जिस औपपातिकपने का कथन करने में आया है इसीकी इस उपांग में विस्तारके साथ पुष्टि करने में आई है, अतः यह पुष्टिकरणरूप समीपता इसमें है, इसीलिये इसमें आचारांगसूत्र की उपांगता सिद्ध होती है। इस उपांगका उपोद्घात इस प्रकार है-' तेणं कालेणं' इत्यादि । (तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम णयरी होत्था ) उस अवसસમીપવતી છે એટલે આચારાંગસૂત્રના પ્રથમ અધ્યયનના પ્રથમ ઉદેશમાં " एवमेगेसिं णो णायं भवइ-अत्थि मे आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसि ? के वा इओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि ?" सटसेજીવોને એ જ્ઞાન નથી હોતું કે મારો આત્મા ઉત્પત્તિશીલ છે કે નથી, હું પ્રથમ કોણ હતા અને અહિંથી મૃત્યુબાદ પરભવમાં હું કોણ થઈશ. ઈત્યાદિ સૂત્ર જે કહેલું છે, તથા એમાં આત્માનું જે ઔપપાતિકપણાનું કથન કરવામાં આવ્યું છે તેની આ ઉપાંગમાં વિસ્તાર સહિત પુષ્ટિ કરવામાં આવી છે. આમ આ પુષ્ટિકરણરૂપ સમીપતા આમાં છે તે માટે આમાં આચારાંગસૂત્રની ઉપાંગતા सिद्ध थाय छे. Sinनो पोधात ॥ ५४ारे छ:-'तेणे कालेणं' त्या (तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णाम णयरी होत्था) ते मक्सपियर्सना
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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