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________________ पीयूषवर्षिणी-टोका. स. ३२ अम्बडपरिव्राजकविषये भगवदगौतमयोःसंवादः ५८१ मूलम्-पह णं भंते ! अम्मडे परिव्वायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ॥ सू० ३२॥ मूलम्-णो इणढे समझे गोयमा ! अम्मडे णं परि गौतमः पृच्छति-'पहू णं भंते' इत्यादि । 'भंते !' हे भदन्त ! 'अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए' अम्बडः परिवाजको देवानुप्रियाणामन्तिके मुण्डः लुञ्चितकेशो भूत्वाऽगारादनगारितां साधुत्वं प्रवजितुं प्राप्तुं 'प्रभू णं' प्रभुः समर्थः किम् ? ‘णं' इति वाक्यालङ्कारे । सू० ३२ ॥ टीका--भगवानाह-'णो इणद्वे समढे गोयमा ?' इत्यादि । 'णो इणद्वे समद्वे गोयमा!' नाऽयमर्थः समर्थो गौतम ! 'अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए' अम्बडः खलु 'पहू णं भंते ! अम्मडे परिव्वायए' इत्यादि। (भंते) हे भदन्त ! ( अम्मडे परिव्यायए ) यह अम्बड परिव्राजक ( देवाणुप्पियाणं अंतिए) आप के पास (मुंडे भवित्ता) मुंडित होकर (अगाराओ) आगार अवस्था से (अणगारियं) अनगार अवस्था को (पव्वइत्तए) धारण करने के लिये (पहू णं) समर्थ है क्या ? ॥ सू० ३२॥ 'णो इणद्वे समढे' इत्यादि। प्रभु ने कहा-(गोयमा ) हे गौतम ! (णो इणद्रे समद्रे) यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्यों कि (अम्मडे णं परिवायए) यह अम्बड परिव्राजक (समणोवासए) श्रमणोपासक 'पहू णं भंते! अम्मडे परिव्वायए' त्याहि. (भते) हे महन्त ! (अम्मडे परिव्यायए) । अन्य परिवा४४ (देवाणुप्पियाणं अंतिए) २॥पनी पासे (मुंडे भवित्ता) भुजित थने (अगाराओ) स॥२ अवस्थाथी (अणगारियं), मनगा२ २मस्थाने (पव्वइत्तए) घार ४२वाने माटे (पहू णं) समर्थ छ भ? (सू० ३२) “णो इणटे समढे " त्याहि. प्रभुणे ४यु (गोयमा) हे गौतम! (णो इणद्वे सम) मा अर्थ समथ नथी. भ (अम्मड़े णं परिव्वायए) २१॥ सभ्य परिका (समणो
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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