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________________ औपपातिकत्रे बहुउदगा कुडिव्वया कण्हपरिव्वायगा । तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिव्वायगा भवति, तं जहा - ५४० कण्णे य करकंडेय, अंबडे य परासरे । कण्हे दीवायणे चेव, देवगुत्ते य नारए ॥ भार्गवाः–भृगुर्लोकप्रसिद्ध ऋषिस्तद्वंशजाः भार्गवाः । ' हंसा ' - हंसाः = पर्वत कुहरपथ्याssश्रमाssरामवासिनो भिक्षार्थं च ग्रामं प्रविशन्ति । ' परमहंसा' परमहंसाः, एतेषु नदी - पुलिनसमागमप्रदेशेषु वसन्ति मरणसमये चीरकौपीनकुशांश्च त्यक्त्वा प्राणान् परित्यजन्ति । 'बहुउदगा ' बहूदकाः, इमे तु ग्राम एकरात्रिका, नगरे पञ्चरात्रिकाः प्राप्तभोगांव भुञ्जते इति । ' कुडिव्या ' कुटीव्रताः = कुटीचराः, ते च कुट्यां वर्तमाना व्यपगत क्रोधलोभमोहा अहङ्कारं वर्जयन्ति । ' कण्हपरिव्वायगा ' कृष्णपरिव्राजकाः - परिव्राजकविशेषा एव, नारायणभक्तिका इति केचित्। ‘तत्थ खलु इमे अट्ठ माहणपरिव्वायगा भवंति ' तत्र खलु st ह्मणरिवाजका भवन्ति । तं जहा " , तद्यथा - ' कण्णेय करकंडेय अंबडे य भार्गव- - भृगु ऋषि के वंशज (शिष्य), हंस - पर्वतकी गुफा, आश्रम, देवमन्दिर तथा बगीचा आदि में निवास करने वाले साधु, जो सिर्फ भिक्षा के लिये ही ग्राम में आते हैं, (परमहंसा) नदी के तट पर नग्नरूप में रहने वाले साधु, जो मरण काल में चीर, कौपीन और कुशा को त्याग कर मरण करते हैं । (बहुउदगा) एक रात ग्राम में पांच राततक नगर में रहें तथा जो मिले सो खावें ऐसे बहूदक साधु, ( कुडिव्या) कुटीत्रत - कुटीचर- क्रोध, लोभ एवं मोह तथा अहंकार से रहित होकर पर्णकुटी में रहने वाले, ( कण्हपरिव्वायगा ) नारयण के भक्त परिव्राजक—अथवा कृष्ण के भक्त परिव्राजक, (तत्थ) इनमें (अट्ठ) आठ (इमे) ये (माहण 4 પર્વતની ગુફા, આશ્રમ તથા બગીચા આદિમાં નિવાસ કરવાવાળા સાધુ, मात्र लिक्षी भाटे गामां आवे छे. (परमहंसा) नहीना तट उपर नग्नરૂપમાં રહેનારા સાધુ, જે મરણકાલમાં ચીર, કૌપીન (લંગોટી) અને કુશાને त्याग ४री भराशु थामे छे. (बहुउद्गा) खेड रात ગામમાં, પાંચ રાત સુધી नगरमां रहे तथा ने भजे ते जाय सेवा मडूह साधु, ( कुडिब्बा) टीવ્રત-કુટીચર-ક્રોધ, લેાભ તેમજ મેાહ તથા અહંકારથી રહિત થઈને પણ - छुटीमा रहेवावाजा, ( कण्ह परिव्वायगा ) नारायगुना लम्त परिवा४४ અથવા पृ॒ष्णुना लडत परिवा४४, (तत्थ ) मेमां (अट्ठ) आठ (इमे) या (माहणपरि
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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