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________________ ५३६ औपपातिकसूत्रे सिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । पलिओवम वाससहस्समब्भहियं ठिई। आराहगा ? णो इणहे समझे। सेसं तं चेव ॥ सू० १३॥ ..... मूलम्—से जे इमे जाव सन्निवेसेसु पव्वइया समणा 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे कालं कृत्वा 'उक्कोसेणं जोइसिएम देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति' उत्क्रोशेन ज्योतिषिकेषु देवेषु देवत्वेनोपपत्तारो भवन्ति; 'पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई' पल्योपमं वर्षशतसहस्राभ्यधिकं स्थितिःवर्षशतसहस्राणि अभ्यधिकानि यत्र तत्-वर्षशतसहस्राभ्यधिकम् एकलक्षवर्षाधिकं पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्तेति । शिष्यः पृच्छति-एते ज्यौतिषिका देवा 'आराहगा?' आराधकाः= परलोकस्याराधका भवन्ति किम् ?, उत्तरमाह-'णो इणडे समटे' नाऽयमर्थः समर्थः संगतः, परलोकस्याराधका न भवन्ति। अस्यार्थस्तु-अत्रैवोत्तरार्दैऽष्टमे सूत्रे व्याख्यातः ॥ सू० १३ ॥ टीका–से जे इमे' इत्यादि । 'से जे इमे' अथ य इमे 'जाव सन्निवेमरण के अवसर में मृत्यु के वशवर्ती हो, (उकोसेणं जोइसिएम देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति) उत्कृष्ट रूप से ज्योतिषी देवों में देवरूप से उत्पन्न हो जाते हैं। (पलि ओवमं बाससयसहस्समब्भहियं ठिई) वहां पर उनकी स्थिति १ लाख वर्ष अधिक एक पल्यप्रमाण होती है। गौतम पूछते हैं-हे नाथ । (आराहगा) ये परलोक के आराधक होते है या नहीं ? उत्तर-(णो इणढे समढे) ये परलोक के आराधक नहीं होते हैं ।। सू. १३ ॥ _' से जे इमे जाव' इत्यादि (से जे इमे) जो ये (जाव सनिवेसेसु) ग्राम नगर आदि स्थानों में (पव्वइया ४८ अक्सरे ४८ ४शने (उक्कोसेणं जोइसिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति) उष्ट३५थी ज्योतिषी वोमा १३५ उत्पन्न थ य छे. (पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ठिई) त्या तेमनी स्थिति १ सय १२स ५२ ४ ५८यप्रभाव होय छे. गौतम पूछे छे , हे नाथ! (आराहगा) तमा ५२सना मा२।५४ लोय छ ॐ नडि ? उत्तर-(णो इणद्वे सम?) तमा ५२॥२॥२॥घ डोत नथी. (सू. १३) ___“ से जे इमे जाव" त्याहि. (से जे इमे) 2 (जाव सन्निवेसेसु) आम ना२ याहि स्थानोमा (पव्वइया :
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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