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________________ पोयूवषिणो-टोका स. ९ अण्डुबद्ध कादीनामुपपातविषये गौतमप्रश्नः ५१७ यगा अंतोसल्लमयगा गिरिपडियगा तरुपडियगा गिरिपक्खंदोमरणं-वलन्मरणं तद्वन्तो वलन्मृतकाः, यद्वा-बुभुक्षादिना आर्ता भूत्वा मृतास्ते वलन्मृतकाः, 'वसद्वमयगा' वशार्तमृतकाः-इन्द्रियविषयवशगता आर्ताः सन्तः शब्दादिवशवर्तिमृगादिवन्मृता इत्यर्थः, ‘णियाणमयगा' निदानमृतकाः-ऋद्धिभोगादिप्रार्थना निदानं, तत्पूर्वकं मरणं निदानमरणम् , तद्वन्त इत्यर्थः, 'अंतोसल्लमयगा' अन्तःशल्यमृतकाः-अन्तःशल्याः अनुद्भुतभावशल्या अन्तःस्थितभल्लादिशल्या वा मृताः, 'गिरिपडियगा' गिरिपतितकाः-गिरेः पर्वतात्पतिताः, 'तरुपडियगा' तरुपतितकाः-वृक्षात्पतिताः, 'मरुपडियगा' मरुपतितकाः-मरौ=निर्जले देशे पतिताः, 'गिरिपक्वंदोलगा' गिरिपक्षान्दोलकाः-गिरिपक्षे पर्वतपार्श्वे आत्मानमान्दोलयन्ति ये ते तथा, गिरिपरिसरान्मरणायैव दत्तझम्पा वे वहां से पार नहीं आ सकें, ( वलयमयगा) परीषह आदि को सहन करने में असमर्थ होने की वजह से गृहीत संयम से जो भ्रष्ट होना इसका नाम वलन्मरण है, अथवा दुःखित होकर जो मरना है उसका नाम भी वलन्मरण है, इस मरण से जो युक्त हों वे वलन्मृतक हैं, ऐसे जो वलन्मृतक हैं, ( वसट्ठमयगा) शब्दादिक के वशवर्ती मृग की तरह जो इन्द्रियों के विषयों में फँसकर दुरवस्था से प्राणों का त्याग करते हैं, (णियाणमयगा) जो इन्द्रियभोगादिकों की चाहनारूप निदान से मरण करते हैं, (अंतोसल्लमयगा) हृदय में शल्य धारण कर जो मरण करते हैं, अथवा भल्लादिक शस्त्रों से विदारित होकर जो मरण करते हैं, (गिरिपडियगा) पहाड़ से गिरकर जो मरण करते हैं, (तरुपडियगा) पेड़ से गिरकर जो मरण करते हैं, (मरुपडियगा) जो मरुस्थल में पड़ कर मर जाते हैं, (गिरिपक्खंदोलगा) पर्वत से जो झंपापात कर के मर जाते हैं, (तरुपक्खंदोलगा) वृक्षों से ગારામાં એવી રીતે ઉભા કરી દેવાય છે કે જેથી પાછા તે ત્યાંથી નીકળી શકે नहि. (वलयमयगा) परिषड माहिना सहन ४२वामा असमर्थ पाथी दीघेता સંયમથી ભ્રષ્ટ થવું તેનું નામ સ્મરણ છે. આ મરણથી જે યુક્ત હોય અથવા દુઃખી થઈને જે મરણ થાય તેવા મરણથી જે યુક્ત હોય તે વલ—त४ छ, (वसट्टमयगा) २०४ महिने ११ २७ भृगनी पेठे २ द्रियाना विषयमा इसाई ४६ प्राणन त्या ४२ छ, (णियाणमयगा) २ दिया। माहिनी याहुना ३५ निहानथी भरण पामे छ, (अंतोसल्लमयगा) इयमां શલ્ય ધારણ કરીને ( છરી મારીને ) જે મરણ પામે છે, અથવા माखi विशेरे शस्त्रोथी 2 भ२९५ पामे छ, (गिरिपडियगा) ५६ ७५२था ५डीने २ भ२९५ पामे छ, (तरुपडियगा) 3थी ५डी रे भ२५ पामे छे, (मरुप डियगा) हे मरुस्थलमा ५डीने भरी जय छ, (गिरिपक्खंदोलगा) पर्वत ५२थी
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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