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________________ पोषवर्षिणी- टीका. सू. ८ असंयतानां देवत्वेनोपपाते हेतुप्रदर्शनम्. ५०९ देवे सिया, अत्थेगइया णो देवे सिया ? गोयमा ! जे इमे जीवा गामा - गर-णयर-निगम - रायहाणि - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह-पट्टणा-सम-संवाह सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए अकामकको देवः स्यात्, अस्त्येकको न देवः स्यात् :- एवं यदुच्यते यदेको देवो भवति एको न भवतीति किंनिमित्तकोऽयं भेद: : इति प्रश्न, भगवानुत्तरमाह - ' गोयमा ! जे इमे जीवा गामा - गर-यर - णिगम - रायहाणि - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुह - पट्टणा-समसंवाह - सण्णिवेसेसु' गौतम ! य इमे जीवा ग्रामा - ssकर - नगर-निगम - राजधानी - खेट - कर्बट–मडम्ब-द्रोणमुख–पट्टनाऽऽश्रम - संबाध - सन्निवेशेषु - प्राग्व्याख्यातरूपेषु 'अकामतण्हाए ' अकामतृग्गया-अकामानां = निर्जराद्यनभिलाषिणां सतां तृष्णा-तृट् - अकामतृष्णा ता अ ? 'सेकेणणं भंते! ' इत्यादि । प्रश्न- (भंते!) हे भदंत ! ( से केणद्वेणं एवं बुच्चइ अत्थेगइया देवे सिया अत्थे - गइया देवे णो सिया) आप ऐसा किस कारण कहते हैं कि कितनेक जीव देवलोक में उत्पन्न हो सकते हैं और कितनेक नहीं हो सकते हैं, ? उत्तर - (गोयमा) गौतम ! सुनो; (जे इमे जीवा गामा- गर गयर - निगम - रायहाणि - खेड - कब्बड - मडंब - दोणमुहपट्टणा - सम-संवाह - सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचरेवासेणं अक्कामं अण्हाणग-सीया-यव- दंस-मसग - सेय- जल्ल- मल्ल - पंक - परितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता वी कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उत्तारो भवति) जो जीव प्रकोट्ट सहित ग्राम में, सुवर्णादिक की खानों में, कर 'से केणट्टणं भंते!' इत्याहि ! प्रश्न – (भंते ) हे महंत ! ( से केणटुणं एवं वुच्चइ अत्थेगइया देवे सिया अत्थेगइया देवे णो सिया) साथ सेभ शुं अरथी हो छ। हे उटलाई भव हेवट्यामां उत्पन्न यह शडे छे भने डेंटला नथी यहा शडता ? उत्तर - (गोयमा) गौतम ! सांलणे (जे इमे जीवा गामा- गर - णयर-निगम - रायहाणि - खेड कब्बड - मडंब - दोणमुह - पट्टणा - सम-संबाह-सण्णिवे सेसु अकामतण्हाए अकामछुहाए अकामबंभचेरवासेणं अकाम - अण्हाणग-सीया-यव दंस-मसग - सेय- जल्ल-मल्ल-पंक- परितावेणं अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति, परिकिलेसित्ता कालमा कालं किच्चा अण्ण वाणमंतरेसु देवलो देवत्ताए उववत्तारो भवंति ) જે જીવ કાટ ખાધેલા ગામમાં, સુવર્ણની ખાણેામાં, કર વગરના નગરમાં, વ્યાપારીઓની વસ્તીવાળા નિગમમાં, રાજા
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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