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________________ औपपातिकसूत्रे तए णं सा महतिमहालिया मणूसपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हह-तुट्टवासिया वा' एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् उपस्थितः श्रमणोपासको वा श्रमगोपासिका वा, 'विहरमाणे विहरन् ‘आणाए आराहए भवई' आज्ञाया आराधको भवति । अगारधर्मस्य विस्तरतो व्याख्या उपासकदशाङ्गसूत्रस्यागारधर्मसंजीवन्याख्यायां व्याख्यायां प्रथमाध्ययनेऽस्माभिः कृता । सू० ५७॥ . टीका-'तए णं' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु 'सा महतिमहालिया' सा महातिमहती अतिविशाला-'मसगृपरिसा' मनुष्यपरिषद् 'समणरस भगवओ महावीरस्स अंतिए' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽन्तिके समीपे 'धम्मं सोचा आराहए हवइ) इस धर्म की शिक्षा में उपस्थित चाहे श्रमण का उपासक-गृहस्थ हो, चाहे श्रमण की उपासिका-श्राविका हो, कोई भी क्यों न हो, जो भी प्राणी इस धर्म की छत्रच्छाया में अपने आपको विसर्जित कर देता है, अर्थात्-इन व्रतों की आराधना करता है वह तीर्थकर प्रभु की आज्ञा का आराधक माना गया है । अगारधर्म की विस्तृतरूप से व्याख्या उपासकदशांग सूत्र के ऊपर विरचित अगारधर्मजीवनीनामकी टीका में प्रथम अध्ययन में की गई है । अतः विशेषार्थी विषय को वहां से विस्ताररूप में देख लें । सू० ५७॥ 'तए णं सा महतिमहालिया' इत्यादि। (तए गं) तदन्तर (सा महतिमहालिया) वह अतिविशाल (मणूसपरिसा) मनुष्यों की सभा (समणस्स) श्रमण (भगवओ) भगवान ( महावीरस्स ) महावीर के इए धम्मे पण्णत्ते) उत्थना धर्म सिद्धांतभा सा छे. ( एयस्म धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए हवइ) 0 धमनी शिक्षामा उपस्थित, या श्रमाना उपास४-१७२५ હાય, ચાહે શ્રમણની ઉપાસિકા-શ્રાવિકા હોય, જે કોઈ પણ પ્રાણી આ ધર્મની છત્ર-છાયામાં પિતાની જાતનું વિસર્જન કરી દે છે–આ વ્રતની આરાધના કરે છે, તે તીર્થકર પ્રભુની આજ્ઞાન આરાધક મનાય છે. અગારધર્મની વિસ્તૃતરૂપથી વ્યાખ્યા ઉપાસકદશાંગસૂત્રના ઉપર બનાવેલી અગારધર્મ સંજીવની નામની ટીકામાં પ્રથમ અધ્યયનમાં કરવામાં આવેલી છે, માટે વિશેષ જિજ્ઞાસુઓએ આ વિષયને ત્યાંથી વિસ્તારરૂપે જોઈ લે. (સૂ) પ૭) 'तए णं सा महतिमहालिया' /त्याहि. (तए णं) त्या२ पछी (सा महितमहालिया) ते मतिविशार (मणूस
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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