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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका सु. ५४ कूणिकस्य भगवदुपासना ४३५: माणे पज्जुवासइ | माणसिया ए - महयासंवेगं जणइत्ता तिव्वध-: म्माणुरागरत्ते पज्जुवासइ ॥ सू० ५४ ॥ मूलम् - तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतो अंतेउरंसि पहायाओ जाव पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसि सम्बन्धिन्या पर्युपासनया, 'महयासंवेगं ' महासंवेगं = महद्वैराग्यं ' जणइत्ता ' जनयित्वा 'तिव्व - धम्मा - णुराग-रत्ते ' तीव्र-धर्मानुराग-रक्तः सन् ' पज्जुवासइ ' पर्युपास्ते, अनेन वीतरागाणं पुष्पधूपादिभिः सावद्यपूजा निराकृता ॥ सूत्र ५४ ॥ टीका — 'तए णं ताओ' इत्यादि । 'तए णं' ततः खलु 'ताओ सुभद्दप्प-: मुहाओ' ततः तदनन्तरम् - सुभद्राप्रमुखाः 'देवीओ' देव्यः = राश्यः अंतो अंतेउरंसि अन्तरन्तःपुरस्य स्त्रीभवनमध्ये, 'व्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ' स्नाताः यावत् प्रायसना इस प्रकार की - (महया संवेगं जणइत्ता तिव्व-धम्मा - णुराग-रते पज्जुवासइ) प्रभु. के से धर्म का उपदेश सुन कर राजा के हृदय में परम वैराग्य उत्पन्न हुआ और धर्मानुराग से प्रेरित होकर वे प्रभु की उपासना करने लगे । इस सूत्र से वीतरागों की पुष्पधूप आदि से सावद्य पूजा करना सर्वथा निषिद्ध है - यह सूचित होता है ॥ सू० ५४ ॥ 'तए णं ताओ इत्यादि । मुख (तए णं) इसके बाद (ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ) वे सुभद्राप्रमुख देवियां भी (अंतो अंतेउरंसि) अंतः पुरस्थ स्त्रीभवन के मध्यवर्ती स्नानागार में (व्हायाओ जाव आयर ४२ता (पज्जुवा सइ) तेभनी उपासना ४२वा साज्या ( माणसियाए) રાજાએ ભગવાનની માનસિક ઉપાસના २मा प्र}ारे ४री- (महया संवेगं जणइता तिव्व- धम्मा-णुराग-रत्ते पज्जुवासइ) प्रभुना भुजथी धर्मना उपदेश सांलળીને રાજાના હૃદયમાં પરમ વૈરાગ્ય ઉત્પન્ન થયું, અને ધર્માનુરાગથી પ્રેરિત થઇને તેઓ પ્રભુની ઉપાસના કરવા લાગ્યા. આ સૂત્રથી વીતરાગાની પુષ્પ ધૂપ આદિ વડે સાવદ્યપૂજા કરવી એ સર્વથા નિષિદ્ધ છે તે સૂચિત થાય છે. (सू० १४.) 66 तए णं ताओ" इत्याहि. (तए णं) त्यार पछी ( ताओ सुभद्दष्पमुहाओ देवीओ ) ते सुभद्रा प्रभु हेवीओ। यषु (अंतो अंतेउरंसि ) मतःपुरभां स्त्रीलवनना मध्यवर्ती स्नानागारभां (ण्हायाओ जाव पायच्छित्ताओ) स्नान इरीने तुङ तथा असिउर्भथी
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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