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________________ ३८५ पीयूषवर्षिणी- टीका सु. ४७ बलव्यापृतस्य कूणिकं प्रतिनिवेदनम् बलवाउए तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पि इ || सू० ४६ ॥ मूलम् — तर णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ, हय-गयत्रैवोपागच्छति ' उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ ' उपागत्य एतामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयति । सू० ४६ ॥ टीका- 'तए णं ' इत्यादि । ' तए णं से बलवाडए 9 ततः खलु स बलव्यापृतः ‘कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स' कूणिकस्य राज्ञो भंभसारपुत्रस्य 'आभिसेक्कं हत्थरयणं पडिकप्पियं ' आभिषेक्यं हस्तिरत्नं परिकल्पितं “ पासइ ' पश्यति, ' हयगय जाव सण्णाहियै ' हय- गज-यावत् संनाहितां 'पास' पश्यति, अत्र यावच्छब्देन , J चुकी तब फिर वह कोटवाल ( जेणेव बळवाउए तेणेव उवागच्छइ ) जहाँ सेनापति था वहाँ पर पहुँचा । पहुँच कर उसने नगरी साफ हो चुकी है इस बात की उसे खबर दी || सू० ४६॥ , तए णं से बलवाउए ' इत्यादि । (तए णं ) इसके बाद ( से बलवाउए ) उस सेनापतिने (भंभसारपुत्तस्स) भंभसार अर्थात् श्रेणिक के पुत्र ( कोणियम्स रण्णो ) कूणिक राजा के ( आभिसेक ) अभिषिक्त-पट्ट ( हत्थिरयणं ) हस्तिरत्नको (पडिकप्पियं) अच्छी तरह से शृंगारित किया हुआ (पास) देखा । ( हयगय जाव सण्णाहियं पासइ ) तथा - हय - गज आदि से युक्त चतुरंगिणी सेना को भी सन्नद्ध देखा । ( सुभद्दापमुहाणं देवीणं महारथी साई थर्ध त्यारे वजी ते अटवास ( जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ) જ્યાં સેનાપતિ હતા ત્યાં પહેાંચ્યા અને પહેાંચીને તેણે નગરી સાફ થઈ ગઈ छे, मे वातनी तेने अमर हीधी. (सू० ४६) 6 तए णं से बलवाउए' इत्याहि. (तए णं) त्यारपछी [ से बलवाउए] ते सेनापति [भसारपुत्तस्स ] ललसार अर्थात् श्रेणिउना पुत्र (कोणियस्स रण्णो ) डि रामना [ आभिसेकं] मालिषेऽयभट्ट (हत्थरयणं) हाथीरत्नने (पडिकप्पियं) सारी रीते शत्रुगारे ( पासइ) लेये. ( हयगय जाव सण्णाहियं पासइ) तथा-हुय ग આદિથી યુકત ચતુરગિણી
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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