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________________ ३८२ औपपातिकलत्रे समं आडहइ, आडहित्ता वट्टमग्गंगाहेइ, गाहित्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चपिणइ ।। सू० ४४॥ मूलम्-तए णं से बलवाउए णयरगुत्तियं आमंतेइ, हनयानानि तेषु प्रतोदयष्टीः प्रतोदधरान्-शकटवाहकांश्च स्थापयति । 'आडहित्ता' आहृत्य, 'वट्टमग्गं' वर्तमार्गम्=शकटादिगम्यमार्ग-राजमार्ग 'गाहेइ' ग्राहयति, ग्राहयित्वा यत्रैव बलव्यापृतस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य 'बलबाउयम्स एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ' बलव्यापृताय एतामाज्ञप्तिका प्रत्यर्पयति आज्ञा सम्पाद्य पश्चान्निवेदयतीत्यर्थः ॥ सू०४४ ॥ टीका–'तए थे' इत्यादि । 'तए ण से बलवाउए' ततः खलु स बलव्यापृतो उन यानों में हांकने की चाबुकों एवं हांकने वालों को एक ही साथ स्थापित कर दिया, (आडहित्ता) चाबुक लेकर हांकने वाले जब अच्छी तरह उन यानों पर जमकर बैठ चुके तब (वट्टमग्गं गाहेइ) उसने उन यानों को राजमार्ग पर उपस्थित किये । (गाहित्ता नेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ) उन्हें राजमार्ग पर उपस्थित कर फिर वह यानशालाधिकारी जहां सेनापति थे वहां पहुंचा । (उवागच्छित्ता बलबाउयस्स एयमाणत्तियं पञ्चप्पिगइ) पहुँचकर उसने कहा कि हे स्वामिन् ! आपके आज्ञानुसार सभी यान तैयार हैं । सू० ४४ ॥ 'तए णं से बलबाउए' इत्यादि । (तरणं) इसके बाद (से बल पाउर) उस सेनापतिने (गयागुत्तिय) नगर की रक्षा पओयधरए य समं आडहइ) तेथे ते यानामा पानी यामुळे तेभर iपापाजाने ४ ४ साथे स्थापित ४री हीधा. ( आडहित्ता) यामु४ साधने isपापा न्यारे सारी ते ते यान। ५२ मेसी युध्या त्यारे (वट्टमग्गं गाहेइ) तेथे ते यानाने २००४ मा ५२ ४२ ४ा, (गाहित्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवा છ) તેમને રાજમાર્ગ પર હાજર કરીને પછી તે યાનશાળાધિકારી સેનાपतिनी पासे पांय. ( उवागच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ) પહોંચીને તેણે કહ્યું કે હે સ્વામિન ! આપની આજ્ઞા પ્રમાણે બધાં યાન તૈયાર छ. (सू० ४४) "णं से बलवाउए" त्याहि. - (तए ) त्या२ पछी (से बलवाउए) ते सेनापति (णयरगुत्तिय) नारनी
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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