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________________ औपातिक मूलम् - तए णं से बलवाउए कूणिएणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे हट्ट - जाव - हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामित्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणेइ, पडिणित्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी ३७० टीका - ' ' इत्यादि । 'तए णं से बलवाउए' ततः खलु स बव्यापृतःसेनापतिः 'कूणिएणं रण्णा एवं बुत्ते समाणे' कूणिकेन राज्ञा एवमुक्तः सन्, 'हदुतुङजाब-हियए' हृष्टतुष्टयावद्धृदयः 'करग्रलपरिग्गहियं ' करतलपरिगृहीतं – बद्ध करतलयुगलम्, सिरसावतं ' शिरआवर्त्तं ' 'मत्थए अंजलिं कट्टु ' मस्तके अञ्जलिं कृत्वा ' एवं सामित्ति आणा विएणं वयणं पडिसुणेइ ' एवं स्वामिन्! इति आज्ञाया विनयेन वचनं प्रतिशृणोति = एवं स्वामिन् ! यद्यथाज्ञापयति देवस्तत्तथैव संपादयामि इत्युक्वा आज्ञाया वचनं सविनयं प्रतिशृणोति - स्वीकरोति, प्रतिश्रुत्य = स्वीकृत्य ' हत्थिवाउयं 6 तएां से बलवाउए ' इत्यादि । (तए णं) इसके बाद ( से बलवाउए) वह सेनापति ( रण्णा एवंवुत्ते समाणे ) राजा के द्वारा इस प्रकार से आज्ञापित होता हुआ (हट्ठ-तुटु - जाव - हियए करयल-परिगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामित्ति आणाए विणणं वयणं पडिसुणे) विशेष हर्षित एवं संतुष्ट हुआ, यावत् अन्तःकरण में प्रफुल्लित हो गया। दोनों हाथों को जोड़कर मस्तकपर अंजलिरूप में उन्हें स्थापित करते हुए फिर वह इस प्रकार बोला कि हे स्वामिन्! आपने जिस प्रकार का आदेश प्रदान किया है वह मैं उसी प्रकार से संपादित करूँगा । इस रीति से विनयपूर्वक उसने राजा के आदेश को स्वीकार कर लिया । 'तए णं से बलवाउए' इत्यादि. (तए णं) त्यार पछी ( से बलवाउए) ते सेनापति (रण्णा एवं वुत्ते समाणे) रानना द्वारा या अठ्ठारे याज्ञापित थतां (हट्ठ- तुट्ठ - जाव - हियए करयल - परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामित्ति आणाए विणणं वयण पडिसुणेइ ) વિશેષ તિ તેમજ સંતુષ્ટ થયા, યાવત્ અંત:કરણમાં પ્રફુલ્લિત થઇ ગયા. અન્ને હાથેા જોડીને મસ્તક ઉપર અંજલિરૂપે તેમને સ્થાપિત કરી પછી તે આ પ્રકારે એ કે હે સ્વામિન્ ! આપે જે પ્રકારના આદેશ પ્રદાન કર્યા છે તે હું તેવીજ રીતે સંપાદિત કરીશ. આ રીતે વિનયપૂર્વક તેણે રાજાના
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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