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________________ पीयूषवर्षिणी टीका सू. ३५ व्यन्तरदेववर्णनम् रक्खसा किंनर-किंपुरिस-भुयगपइणोयमहाकाया गंधव्व-णिकायगणा णिउण-गंधव्वगीय-रइणो अणवण्णिय-पणवणिय-इसिवाइय-भूयवाइय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पययदेवा चंचल-च२, 'जक्ख-रक्खसा' यक्षाः ३, . राक्षसाः ४, ‘किंनर-किंपुरिस-भुयगपइणो' किन्नर - किंपुरुष -- भुजगपतयः - किनराः ५, किम्पुरुषा ६, भुजगपतयः-महोरगाः ७, 'महाकाया' महाकायाः विशालशरीरधारिणः, ८, ‘गंधध-णिकाय-गणा' गन्धर्वनिकायगगाः-गन्धर्वसमूहगणाः, गन्धर्वजातय इत्यर्थः, 'जिउण-गंधव-गीय-रइणो' निपुग-गान्धर्व-गीत-रतयः-निपुणं-प्रशस्तं, गान्धर्व नाट्योपेतं गानं, गीतञ्च नाट्यर्वर्जितगानं, तत्र रतिर्येषां ते तथा, 'अगवण्णिय-पणवणिय-इसिवाइय-भूयवाइय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पयय-देवा' अप्रज्ञप्तिक-पञ्चप्रज्ञप्तिक-ऋषिवादिक-भूतवादिक-क्रन्दित-महाक्रन्दिताच कूष्माण्ड-पतगदेवाः-एतेऽष्टौ व्यतरा निकायविशेषभूता रत्नप्रभापृथिव्या उपरितनयोजनरक्खसा किंनर-किंपुरिस-भुयगपइणो य महाकाया गंधव्वणिकायगणा) पिशाच १, भूत २, यक्ष ३, राक्षस ४, किन्नर ५, किंपुरुष ६, भुजगपति ७, एवं विशाल शरीर धारण करनेवाला महोरग ८, गंधर्वनिकायगण, अर्थात्-गन्धर्व ९, ये व्यन्तर देव हैं। ये सब (णिउण-गंधन-गोय-रइणो) प्रशस्त नाटकीयगान में एवं नाट्यवर्जित गानविद्या में रति रखनेवाले होते हैं । (अणवण्णिय-पणवणिय-इसिवाइय-भूयवाइय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पययदेवा ) अप्रज्ञप्तिक, पञ्चप्रज्ञप्तिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्माण्ड और पतगदेव; ये भी आठ व्यन्तरनिकाय के देव हैं । इन सब का निवास रत्नप्रभापृथिवी के ऊपरी भाग में १०० योजन तक है । ये कैसे होते हैं ? सो भूया य जक्ष- रक्खसा किन्नर-किंपुरिस-भुयगपइणो य महाकाया गंधव्वणिकायगणा) पिशाय १, भूत २, यक्ष 3, राक्षस ४, सिन्न२ ५, ५३५ ६, ભુજગપતિ ૭, એવં વિશાલ શરીર ધારણ કરવાવાળા મહેરગ ૮, ગંધર્વ नियर अर्थात् ६, से व्यन्त२ हेव छ. २ मा ( णिउणगंधव्य-गीय-रइणो) प्रशस्त नाटीय गानमा, तभ०४ नाटय-पति मानविधामा प्रेम रामपाडाय छे. (अणवण्णिय-पणवणिय-इसिबाइय-भूयवाइय-कंदिय-महाकंदिया य कुहंड-पयय-देवा ) अज्ञ४ि, यशति, ऋषिવેદિક, ભૂતવાદિક, કન્દ્રિત, મહાકન્દિત, કૃષ્માંડ અને પતગ દેવ આ પણ આઠ વ્યન્તર નિકાયના દેવ છે. આ બધાને નિવાસ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઉપ२ना मामा १०० येन सुधा छ. तसा उपाय छ ? ते ४ छ-(चंचल
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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