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________________ औपपातिकसूत्रे वित्था-णागपइणो सुवण्णा विज्जू अग्गीयदीव उदही दिसाकुमारा य पवणा थणिया य भवणवासी णागफडा-गरुल-वइर-पुण्णवासिन इत्युच्यन्ते-भवनवासिनामेतेषु दशसु भेदेषु प्रथमभेदं परित्यज्य नव भेदानत्र दर्शयति‘णागपइणो' नागपतयो-नागकुमाराः । 'सुवण्णा' सुपर्णकुमाराः । 'विज्जू'--विद्युत्कुमाराः 'अग्गी य' अग्निकुमाराश्च । 'दीवा' द्वीपकुमाराः । 'उदही' उदधिकुमाराः । 'दिसाकुमारा य' दिशाकुमाराश्च 'पवणा' पवनकुमाराः 'थणिया य' स्तनितकुमाराश्च । एते 'भवणवासी' भवनवासिनः । एतेषां नागकुमारादीनां नागफणादीनि चितानि भवन्ति, तानि क्रमशो दर्शयन्नाह-'णागफडा-गरुल-बदर-पुण्णकलससीह-हयवर-गयंक-मयरंक-वरमउड-बद्धमाण-णिज्जुत्त-विचित्त-चिंधगया' नागफणागरुड-वज्र-पूर्णकलश-सिंह-हयवर-गजाङ्क-मकराङ्क-वरमुकुट-वर्द्धमान-निर्युक्त-विचित्र -चिह्नगताःनागकुमाराणां मुकुटेषु नागफगाचिहनानि,सुपर्णकुमागणां मुकुटेषु गरुडचिहनानि, विद्युत्कुमाराणां मुकुटेषु वज्रचिह्नानि, अग्निकुमाराणां मुकुटेषु पूर्णकलशचिह्नानि, द्वीपकुमाराणां मुकुटेषु सिंहचिविशेष हैं उनमें ये रहते हैं, इसलिये ये भवनवासी कहलाते हैं। सूत्रकार इन्हीं भवनवासियों के प्रथम भेदको छोडकर अन्य नौ भेदों को यहां बतला रहे हैं-(णागपइणो) नागपति. नागकुमार (सुवण्णा) सुपर्णकुमार (विज्जू) विद्युत्कुमार (अग्गी य) अग्निकुमार (दीवा) द्वीपकुमार (उदही) उदधिकुमार (दीसाकुमारा य) दिशाकुमार (पवणा) पवनकुमार (थणिया य) स्तनितकुमार (भवणवासी) ये इस प्रकार भवनवासी देवों के भेद हैं । इनमें (णागफडा-गरुल-वइर-पुण्णकलस-सिंह-हयवर-गयंक-मयरंक-चरमउडवद्धमाण-णिज्जुत्त-विचित्त-चिंध-गया) नागकुमारों के मुकुटमें नागकी फणाका चिह्न है ॥१॥ सुपर्णकुमारों के मुकुटमें गरुडका चिह्न है ॥२॥ विद्युत्कुमारों के मुकुटो में वज्रका चिह्न है ॥३॥ अग्निकुमारों के मुकुटों में पूर्णकलशका चिह्न है ॥४॥ द्वीपकुमारों के मुकुटों ભવનવાસિઓના પ્રથમ ભેદ છોડીને અહીં બીજ નવ ભેદને मता छ-(णागपइणो) नापति-नागभार (सवण्णा) सुपर्ण भा२ ( विजू ) वियुत्भार (अग्गी य) निभा२, (दीवा) द्वीपमा२ (उदही) विभा२ (दिसाकुमारा य) हिशाभार (पवणा) ५वनमा२ (थणिया य) स्तनितमार (भवणवासी) ॥ ४॥ ५४ारे अपनवासी हेवोना मे छे. आभा (णागफडागरुल-वइर- पुण्णकलस-सिंह-हयवर-गयक-मयरंक - वरमउड-बद्धणाण - णिज्जुत्तविचित्त-चिंध-गया ) नागभाना भुटमा नाजनी नु थिल छ १. સુપર્ણકુમારના મુકુટમાં ગરુડનું ચિહ્ન છે ૨. વિયુકુમારોના મુકુટમાં
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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