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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका सू. ३२ महावीरस्वामिशिष्यवर्णनम् ३१९ वयवर - भंड- भरियसारा जिणव वयणोवदिट्ट-मग्गेण अकुडिलेण सिद्धिमहापट्टणाभिमुहा समण-सत्थवाहा सुसुइ-सुभास - महात्रतं तदेव भाण्डः क्रयणीयवस्तु जातरूपः, नृतः = स्थापितः सारो = रत्नादिरूपः पदार्थों यैस्ते तथा, केन पथा प्रयान्तस्तरन्तीत्यत्राह - 'जिणच वयगोवदिमग्गेग' जिनवरवचनोपदिष्टमार्गेण जिनवरवचनम्=आगमरूपं तेन उपदिष्टः कथि :- मार्ग :- संयमपथः तेन, 'अकुडिलेन' अकुटिलेन - कापट्यादिदोषरहितेन, 'सिद्धिपट्टणामिमुहा ' सिद्धिपत्तनाभिमुखाः - सिद्धिरेव पत्तनं वणिक्पुरं तदभिमुखाः- तस्य मुखाः । ' सगवर सत्थवाहा' श्रमणवर सार्थवाहाः - श्रमणप्रमाद का परित्याग एवं व्यवसाय अर्थात् मोक्ष प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय, इन दोनों मूल्यों से गृहीत क्रीत वरत्रत - महात्रतरूप - मण्डों का क्रयणीय वस्तुओं का - कि जो निर्जरा, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन एवं [ चारित्र ] से शुद्ध हैं, जिनमें सार भरा हुआ है ऐसे मुनिजन इस संसाररूप महासमुद्र से पार होते हैं। किस मार्ग पर चलते हुए ये पार होते हैं ? सो बताते हैं- (जिणवरवय गोवदिमग्गेण ) जिनवर का जो वचन है-आगम है, उसके द्वारा उपदिष्ट जो संयमरूप मार्ग है, उस पर चलकर ही ये मुनिजन इस संसाररूप समुद्र को पार करते हैं । यह मार्ग कैसा है, इसके लिये सूत्रकार (अकुडिलेण) इस विशेषण से स्पष्ट करते हैं - यह मार्ग कपटता आदि दोषों से रहित हैं, अर्थात् - सरल है - आड़ा - टेढ़ा नहीं है । ऐसे मार्ग से प्रयाग करने वाले ये निजन पुन: कैसे होते हैं ? यह अब यहां से स्पष्ट किया जाता है - (सिद्धिपट्टाभि ) इस प्रकार के मार्ग से प्रयाण करने वाले પ્રમાદના પરિત્યાગ તેમજ વ્યવસાય અર્થાત્ માક્ષ પ્રાપ્ત કરવાના દૃઢ નિશ્ચય, मे मन्ने मूल्य (भित ) थी सीधेस-वेद्यातां सीधेस १२ व्रत - महाव्रत३च वासलोना-वेथाती सीधेसी वस्तुओना ने निश, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन તેમજ ચારિત્રથી વિશુદ્ધ છે જેમાં સાર રેલા છે. એવા મુનિજન આ સંસારરૂપ મહાસમુદ્રથી પાર થઈ જાય છે. કયા માર્ગ પર ચાલતાં તેઓ પાર થાય છે ? તે ताये - (जिणवरवयणोवदिट्ठमग्गेण) निवर ने वयन छे-आगम छे- तेना દ્વારા ઉપદેશાએલ જે સયમરૂપ માર્ગ છે, તેના પર ચાલીને જ તે મુનિજને આ સંસારરૂપ સમુદ્રને પાર કરે છે. આ મા કેવા છે? તે માટે સૂત્રકાર ( अकुडिलेण) मा विशेषणुथी स्पष्ट हुने छे. या भार्ग उपटता आहि होषोथी રહિત છે-અર્થાત્ સરળ છે, આડોટડા નથી. એવા મા થી પ્રયાણ કરનારા એ મુનિજના વળી કેવા હોય છે તે બધુ અહીંથી સ્પષ્ટ કરવામાં આવે છે. (सिद्धिपट्टणाभिहा) में अहारना भार्गे प्रयाणु उरवावाजा भुनिन्नो सिद्धि३य
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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