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________________ औपपानिकसूत्रे चिक्खिल्ल-सुदुत्तारं अमर-णर-तिरिय-णरयगइ-गमण-कुडिलपरियत्त-विउलवेलं चउरंतं महतमणवदग्गं रुदं संसारसागरं 'चिक्रवल्लं'-कर्दमः, तेन सुष्टु दुस्तरः स तथा म् । 'अमर-णर-तिरिय-णरय-गई-गमणकुडिल-परियत्तविउल-वेलं'अमर-नर-तिर्थङ्ना क-गतिगमन-कुटिल-परिवर्त-विपुल-वेलम् , सुर-नर-तिर्यङ्नारक -गतिषु चतसृषु-गमनं तदेव कुटेलपरिवर्ताः-वक्रसम्भ्रमास्त एष विपुलाः= विशालाः वेलाः यस्मिन् स तथा तं-चतुगभनरूपकुटिलावर्तविपुलतटम् । 'चउरंत' चतुरन्तम्-दिग्भेदगतिभेदाभ्यां चतुर्विभागम् । 'अहंत' महान्तम्=विशालम् । 'अगवदग्गं' अनवदग्रम् अपर्यवसानम् । 'रुदं रौद्रम्-भयज किम् । 'भीमदरिसणिज' भीमदर्शनीयम्भीमं यथा भवतीत्येवं दृश्यते यःस भीमदर्शनीयस्तम् , यस्थ दर्शनाद् भवमुत्पद्यते तमित्यर्थः । बंधन अवस्था को प्राप्त-चला आ रहा जो कर्म : वं इनसे उद्भूत जो रागादिक परिणाम हैं, ये ही जहां चिकना कादव हैं। इसीसे इसका तिरना दुष्कर हो रहा है । (अमर-णरतिरिय-णयगइ-गमण-कुडिल-पश्यित्त-विउल वेलं) देवगति, मनुष्यगति, तिथंचगति एवं नरकगति इन चार गतियों में जो निरन्तर जीव क परिभ्रमण है वही इसकी वक्र परिवर्द्धमान विस्तृत वेला है । (चउरंत) चतुर्गतिरूप चार दिशाओं के चार विभागों से जो विभक्त है । (महंतं) जो बड़ी विशाल है। (अणवदग्गं) जिसका पार पाना बहुत ही कठिन है । (रुदं) जो बड़ा ही विकरालस्वरूप वाला है। (भीमदरिसणिज्ज) जिसके देखने मात्र से ही भय का संचार होता है। ऐसा यह संसारसर द है । इसका पार पाना विना यमरूप जहाज के हो नहीं सकता है । अब यहां से यमरूप जहाज का वर्णन सूत्रकार करते हैं અવસ્થાથી ચાલ્યાં આવતાં જે કર્મ તેમજ તેમનાથી પેદા થતા જે રાગાદિક પરિણામ છે તે જ ચીકણો કાદવ છે અને તેથી તેને તરવું મુશ્કેલ થાય છે. (अमर-णर-तिरिय-णरय-गइ-गमण-कुडिल-परियत-विउल-वेल) वाति, मनुष्याति, તિર્યંચગતિ તેમજ નરકગતિ આ ચાર ગતિરામાં જે નિરંતર જીવનું પરિભ્રમણ छ ते ४ तेनी isी, परिवधित थती विवेसा छ. (चउरंत) यति३५ यार ाियांना या विभागाथा २ विमत छ. (महंत) २ प भारी छ. (अणवदग्गं) रेनो पा२ पाभव। ४४ छ (रुदं) २ ४ वि४२॥ २१३५वाण छ. (भीमदरिसणिज्ज) न शन मात्रयी ४ नयने सयार થાય છે. એવો આ સંસારસમુદ્ર છે. તેને પાર પામ તે સંયમરૂપ નાવ વગર બની શકતું નથી. હવે અહીંથી સંયમરૂપ નાવ (વહાણ)નું વર્ણન
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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