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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका. स. ३० रस परित्यागतपोवर्णनम्. , २२३ मूलम्-से किं तं रसपरिचाए? रसपरिच्चाएअणेगविहे पण्णत्ते; तं जहा १ निव्विइए,२पणीयरसपरिच्चाए, ३आयंबिलिए, टीका-' से किं तं' इत्यादि-‘से किं तं रसपरिच्चाए' अथ कोऽसौ रसपरित्यागः ?, 'रसपरिचाए' रसपरित्यागः 'अणेगविहे पण्णत्ते' अनेकविधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा' तद्यथा-तदनेकविधत्वं चैवम्-'निन्विइए' निर्विकृतिकः-निर्गता घृतादिरूपा विकृतिर्यस्मात् स निर्विकृतिकः १, 'पणीयरसपरिच्चाए' प्रणीतरसपरित्यागः-प्रणीतरसः प्रचुरत्वात् द्रवघृतबिन्दुसन्दोहोऽपूपादिः, तस्य परित्यागः २, 'आयंबिलिए' आचामाम्लम्विकृतिरहितानामोदनभर्जितचणकादीनां रूक्षान्नानामचित्त उदके प्रक्षिप्यैकासनस्थेन सकृद्भोजनमाचामाम्लं नाम तप उच्यते । तथा चोक्तम् 'से किं तं रसपरिच्चाए ?' इत्यादि । (से किं तं रसपरिच्चाए ?) रसपरित्याग तप किसे कहते हैं ? वह कितने प्रकार का है ? इस प्रकार शिष्य प्रश्न करता है । उत्तर-(रसपरिच्चाए) रसपरित्याग तप (अणेगविहे पण्णत्ते) अनेक प्रकारका कहा गया है । वह इस प्रकार से है-(निश्चिइए) निर्विकृतिक-जिस आहार से घृतादिक विकृति निर्गत हो चुकी हो ऐसे आहारका ग्रहण करना सो निर्विकृतिक है । अर्थात्-विगय नहीं लेना (१)। (पणीयरसपरिच्चाए) प्रणीतरसपरित्याग–अपूप अर्थात् मालपुआ आदि सरस आहार का परित्याग करना (२)। (आयंबिलिए) आचामाम्ल-विगयरहित ओदन, मूंजे हुए चने आदि रूक्ष अन्नको अचित्त पानी में डालकर एकस्थान पर बैठ एक बार ही खाना सो आचामाम्ल तप है । ‘से किं तं रसपरिच्चाए ?' त्यादि (से किं तं रसपरिच्चाए) डवे मही २सपरित्यास त५ अनेछ-त टमा ४२नां छ ? २॥ प्रारे शिष्य प्रश्न ४२ छे. उत्तर (रसपरिचाए) २सपरित्यागत५ (आणेगविहे पण्णत्ते) मने प्रारनां वाय छे. ते म॥ प्रारे छ-(निव्विइए) निर्विति- माडामाथी घी मेरेना विकृति नीजी 10 डाय એ આહાર લેવો તે નિર્વિકૃતિક છે. અર્થાત્ વિગય (ઘી-દૂધ વગેરે) देवू नहि. (१) (पणीयरसपरिच्चाए) प्रतिरसपरित्याग-३५ अर्थात् भासमा माहि सरस माहारने। परित्याग ४२वो. (२) (आयंबिलिए) मायामासવિષયરહિત ભાત, ભુજેલ ચણા આદિ લખું અન્ન અચિત્ત પાણીમાં નાખી
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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