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________________ ६६ औपपातिकसूत्रे णायग-राई-सर-तळवर-माइंबिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति-गणगदोवारिय-अमच्च-चेड-पीढमद-नागर-नेगम-सेटि-सेणावइ -सत्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धिं संपरिबुडे विहरइ ॥ सू० १५ ॥ बिय-कोडुंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय अमच्च-चेड-पीढमद-नागर-नेगम-सेट्ठिसेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धि' अनेक-गगनायक-दण्डनायक-राजेश्वर-तलवर-माडम्बिक-कौटुम्बिक--मन्त्रि-महामन्त्रि-गणक-दौवारिका-ऽमात्य-चेट-पीठमर्द-नागर-नैगम-श्रेष्ठि-सेनापति-सार्थवाह-दूत-सन्धिपालैः सार्धम् , तत्र-अनेके ये गणनायकाः समुत्पन्ने प्रयोजने ये गणं कुर्वन्ति ते गणनायकाः, गणप्रधाना इत्यर्थः, दण्डनायका-दण्डदातारः, राजानः-मण्डलाऽधिपाः, ईश्वरा-ऐश्वर्यसम्पन्नाः युवराजाः, तलवराः-तलं सौवर्णपट्टबन्धः, परितुष्टनरपतिप्रदत्तेन तेन तलेन वराः, तलवराः-सन्तुष्टभूपप्रदत्तपट्टबन्धसुशोभितराजकल्पाः इत्यर्थः, 'माडंबिय' माडम्बिकाः, ग्रामपञ्चशतीपतय इत्यर्थः, यद्वा-सार्वक्रोश-द्वयपरिमितप्रान्तरैर्विच्छिद्य विच्छिद्य स्थितानां ग्रामाणामधिपतयः, कोडुंबिय-कौटुम्बिकाः-बहुकुटुम्बभरणतत्पराः, मन्त्रिणःराई-सर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेडपीढमद्द-नागर-नेगम-सेटि-सेणावइ-सत्यवाह-य-संधिवाल सद्धिं संपरिबुडे विहरइ) अनेक गणनायकों से-प्रयोजन उपस्थित होने पर जो गण तैयार करते थे ऐसे लोगों से, दण्डनायकों से, माण्डलिक राजाओं से, ईश्वरों से युवराजों से, तलवरों से राजाने संतुष्ट होकर जिन लोगों को सुवर्णका पट्टबन्ध दिया, उस पट्टबन्ध से सुशोभित राजातुल्य पुरुषों से, माडम्बिकों से-पाँच सौ ग्रामों के अधिपतियों से, अथवा-ढाई ढाई कोशका अन्तर जिन दो गामों के बीच में होता है ऐसे अनेक गामों के अधिपतियों से, कौटुम्बिकों से-कुटुम्ब के भरण-पोषण में तत्पर व्यक्तियों से बिय-कोडुबिय-मंति-महामंति-गणग-दोवारिय-अमच्च - चेड-पीढमद्द-नागर-नेगमसेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह-दूय-संधिवाल सद्धि संपरिवुडे विहरइ) मने गणनायકેથી=પ્રોજન ઉપસ્થિત થાય ત્યારે જે ગણુ તૈયાર કરતા હતા તેવા લોકોથી, દંડનાયકેથી, માંડલિક રાજાઓથી, ઈશ્વરેથી યુવરાજેથી, તલવથી=રાજાએ સંતુષ્ટ થઈને જે લોકોને સુવર્ણને પટ્ટબન્ધ આપે હોય તે પટ્ટબંધથી સુશોભિત રાજા જેવા પુરૂષોથી, માડમ્બિકથી પાંચસો ગામના અધિપતિઓથી અથવા અઢી અઢી ગાઉનું અંતર જે બે ગામોની વચ્ચે હોય એવા અનેક ગામોના અધિપતિઓથી, કૌટુમ્બિકથી કુટુંબના A२६ पौष ५२ व्यतिमाथी, मात्रमाथी,=४व्यनी समीक्षा (निर्णय )
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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