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________________ औपपातिकसूत्रे मूलम् — तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा दिष्णभइ-भत्त-वेयणा भगवओ पवित्तिवाउया भगवओ तद्देवसिअं पवितिं णिवेदेति ॥ सू० १४ ॥ ૬૪ टीका — तस्स णं पुरिसस्स' इत्यादि, तस्य भगवद्वार्ताहरस्य पुरुषस्य भृत्यस्य 'बहवे अण्णे पुरिसा' बहवोऽन्ये पुरुषाः - राजसेवकाः, ते कीदृशा ? इत्याह'दिण्ण - भइ - भत्त- त-वेयणा' दत्त--भृति-भक्त -- वेतनाः - भृतिः स्वर्णमुद्रादिरूपा, भक्तम् आजीविका मिलती थी । ( भगवओ पवित्तिवाउए ) भगवान् कब कहां से विहार कर किस ग्राम में समवसृत हुए हैं " इस समाचार को जानने के लिये वह नियुक्त किया गया था । तथा [ भगवओ तद्देवसियं पवित्ति fras ] भगवान् के दैनिक वृत्तान्त का भी अर्थात् – आजदिन भगवान् इस नगर से विहार कर इस नगर में विराज रहे हैं इस प्रकार की उनकी दैनिक विहारवार्ता का भी ध्यान रखता था । यह वृत्तान्त राजा के निकट निवेदन करता था । सू० १३॥ 6 तरस णं पुरिसस्स बहवे ' इत्यादि, [ तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा ] इस पुरुष के हाथ के नीचे अनेक पुरुष कि जिन्हें ( दिण्ण - भइ - भत्त - वेयणा ) इसकी तरफ से सुवर्णमुद्रादिरूप भृति, एवं अन्नादिरूप भक्त इस प्रकार दोनों तरह का और भी बहुत "6 मेव। यु३ष राभेो हतो ने शब्द त२३थी ( विउलकयवित्तिए) भोटी भाभूविडा भजती हुती. [ भगवओ पवित्तिवाउए ] ભગવાન કયારે કયાંથી વિહાર કરી કયા ગામમાં સમવસત થયા છે” એ સમાચાર જાણવાને भाटे तेनी निभागुड उरेली हुती. तथा [ भगवओ तद्देवसियं पवित्तिं णिवेदेइ ] ભગવાનના દૈનિક વૃત્તાન્ત=અર્થાત્ આજરોજ ભગવાન આ નગરથી વિહાર કરીને આ નગરમાં બિરાજે છે એ પ્રકારની તેની દૈનિક ( દિવસ સંબંધી ) વહારવાર્તા નું પણ ધ્યાન રાખતા હતા. આ વૃત્તાન્ત રાજાની પાસે નિવેદ્યન उरतो तो. ( सू. १3 ) " तस्स णं पुरिसस्स बहवे " इत्यादि. ( तस्स णं पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा) ते पुरुषना हाथ नीचे मील या पु३षा हता. भने ( दिण्ण - भइ - भत्त - वेयणा ) तेना तर३थी સુવર્ણ મુદ્રાપ ભૂતિ તેમજ અન્નારૂપ ભક્ત-ખારાક એમ બન્ને પ્રકારનું વેતન
SR No.006340
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages824
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aupapatik
File Size24 MB
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