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________________ ८१२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे वक्तव्या । तथा-'चउसट्ठींमहिलागुणा' चतुष्षष्टिर्महिलागुणाः = आलिङ्गनादीनामष्टानां प्रत्येकस्याष्टविधत्वेन ये चतुष्षष्टिसंख्यका महिलागुणास्तेऽपि च न वक्तव्याः । तथा - ' देसजाइकुलरूवणाम नेवत्थपरिजण कहाओ ' देशजातिकुलरूपनामनेपथ्यपरिजनकथाः तत्र–देशकथा=लाटादिदेशसम्बन्धिस्त्रीणां वर्णनम्, यथा-' लाटयः और कपाल आदि से युक्त स्त्री दुभंग होती है, इस प्रकार ये स्त्रीयो की सुभगता और दुर्भगता से संबंध रखने वाली कथा भी साधु को नहीं कहना चाहिये । तथा ( चउसट्ठि महिलागुणाणं च ) जिस कथा में स्त्रियों के चौसठ गुणों से संबंध हो, अर्थात् स्त्रियों के चौंसठ गुणों को लेकरजो कथा चलती हो वह भी साधु को नहीं कहनी चाहिये । आलिङ्गन आदि आठ गुण प्रत्येक आठ २ प्रकार के होते हैं, इस तरह ८x८= ६४ प्रकार के महिलाओं के गुण कहे गये है । सो ये चौंसठ ६४ प्रकार के महिलाओं के गुण भी कथा में चर्चनीय नहीं होनी चाहिये । तथा (देसजाति कुलरूवणामने वत्थपरिजणकहाओ इत्थियाणं अण्णावि य एवमाइयाओ सिंगार कलुणाओ संजमबंभचेर घाओवघाइयाओ बंभचेरं अणुचरमाणेण न कहेयव्वा न सुणेधव्वा न चिंतियन्वा) देश, जाति, कुल, रूप, नाम, नेपथ्य परिजन, इनसे संबंध रखनेवाली स्त्रियोंकी कथाएँ भी नहीं कहनी चाहिये - लाटादि- देश संबंधी स्त्रियों का वर्णन जिस कथामें होता है वह देश कथा है, जैसे-लाट देश की स्त्रियां बहुत ही कोमल " " કપાળ વાળી સ્ત્રી વિરલ હાય છે.” આ રીતે સ્ત્રીએની સુભગતા કે વિરલતા साथै संबंध रायती था पशु साधु हेवी लेई से नहीं. “ चउसट्ठि महिला गुणाणं च " ने थाना सीमाना यासह गुण। साथै संबंध होय એટલે કે સીએના ચાસ ગુણાને અનુલક્ષીને જે કથા ચાલતી હેાય તે પણ સાધુએ કહેવી જોઈએ નહી. આલિંગન આદિ આઠ ગુણામાંને પ્રત્યેક ગુણ આઠે આઠ પ્રકારના હાય છે, આ રીતે ૮×૮=૬૪ પ્રકારના સ્ત્રીઓના ગુણુ બતાવ્યા છે. તે તે ચાસઠ પ્રકારના સ્ત્રીઓના ગુણુ પણ કથામાં ચર્ચાવાને योग्य नथी. तथा "देस जातिकुलरूवणाम-नेवरथ-परिजण - कहाओ इत्थियाणं अण्णा वि य एवमाइयाओ कहाओ सिंगारकलुणाओ संजमवंम चेरघा ओववाइयाओ बंभचेर अणु चरमाणेणं न कहे यच्चान सुणेयव्वा नचिंतियव्वा" देश, अति. डुण, ३५, नाम, नेपथ्य, રિજન, વગેરે સાથે સબ`ધ રાખનારી સ્ત્રીઓની કથાએ પણ કહેવી જોઇએ નહી. લાટાદિ દેશની સ્રીએનાં વર્ણન જે કથામાં હાય તે દેશ કથા છે, જેમકે “ લાઢ દેશની સ્ત્રીઓ બહુ જ મૃદુ વચન વાળી અને નિપુણુ હોય શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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