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________________ सुदर्शिनी टीका अ०२ सू०७ चतुर्थीभावनास्वरूपनिरूपणम् तपः संयमं चापि ' मुएज्जा' मुश्चति-परित्यजति । तथा-भीतः 'भर 'भारम् =कार्यभार 'न नित्थरेज्जा' न निस्तारयति-न निर्वाहयति । तथा-'सप्पुरिसनिसेवियं ' सत्पुरुषनिषेवितं च ' मग्गं' मार्ग भीतो न 'समत्थो' समर्थः = पर्याप्तः ' अणुचरिउं' अनुचरितुम् , सत्पुरुषासेवितं मार्ग भयत्रस्तो न गन्तुं शक्नोतीति भावः । ' तम्हा' तस्माद् हेतोः ‘भयस्स वा' भयस्य भीते व 'वाहिस्स ' व्याधेः क्रमेण माणापहारिणः कुष्ठादे वा, 'रोगस्स' रोगस्य= शीघ्रतया प्राणापहारिणो ज्वरादे वा 'जराए ' जरायाः वा · मच्चुस्स' मृत्यो वा ' अन्नस्स ' अन्यस्य-एम्य इतरस्य वा 'एवमाइयस्स' एवमादिकस्य-एवं वना देता है, तथा (भीओ तवसंजमं पिहुमुएज्जा) वह तप संयम का भी परित्याग कर देता हैं । ( भीओ य भरं न तित्थरेज्जा) भीत मनुष्य शक्ति से इतना अधिक विहीन बन जाता है, अर्थात् उसमें इतनी अधिक मानसिक दुर्बलता आ जाती है कि जिसकी वजह से वह किसी भी कार्यभार को वहन नहीं कर सकता, अर्थात् किसी भी काम को वह पूरा नहीं कर सकता। (सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीओ न समत्थो अणुचरिउं) सत्पुरुष जिस मार्ग का सेवन करते आये हैं उस मार्ग पर चलने के लिये भी वह विचारा समर्थ नहीं हो सकता हैं। (तम्हा न भीइयव्व भयरस वा वाहिस्स वा रोगरस वा ज़राए वा मच्चुस्स वा अन्नरस वा एवमाइयस्स ) इसलिये कीसी भी प्रकार के भय के, क्रम २ से प्राणों को अपहरण करनेवाली व्याधि के, अथवा कुष्ठादिके, शीघ्रता से प्राणों का अपहरण करनेवाले ज्वर आदि रोग के, वृद्धावस्था के, तथा मृत्यु के अथवा इन्हीं जैसी अन्य और कोई तवसंजम पिहुमुएज्जा" ते त५ सयभनी पशु परित्या ४२ हे छ “भीओ य भरं न तित्थरेज्जा" भयभीत भाणुसो सेटमा आधा शतडीन तय छ, भेटले तेनामा એટલી બધી માનસિક દુર્બળતા આવી જાય છે કે જેના કારણે તે કોઈ પણ કાર્યને બોજો ઉઠાવી શકતો નથી. એટલે કે કોઈ પણ કામને તે પૂરું કરી શકતું નથી. "सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीओ न समत्थो अणुचरि" सत्पुरुषाले भानु सेवन કરતા આવ્યા છે, તે માર્ગે ચાલવાને પણ તે સમર્થ બની શકતો નથી. " तम्हा न भीइयव्वं भयस्स वा वाहिस्सवा रोगस वा जराए वा मच्चुरस वा अन्नस्स वा एवमाइयस्स" तेथी डोध ५५ प्रा२नमयथी, उभे में प्राशने હરી લેનાર વ્યાધિના, અથવા કુષ્ઠાદિના, શીવ્રતાથી પ્રાણ હરી લેનાર જવર આદિ રંગના, વૃદ્ધાવસ્થાના તથા મૃત્યુના અથવા તેમના જેવી કોઈ પણ પ્રકા શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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