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________________ ६७२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे GEED असम्यक् श्रुतम् , तथा-'असुणियं' अज्ञातम्-असम्यग्ज्ञातम् , एतादृशं सत्यमपि न वक्तव्यमिति भावः। पुनः कीदृशं सत्यं न वक्तव्यम् ? इत्याह-'अप्पणो थबणा' आत्मनः स्तवना-प्रशसा यत्र भवेत्तत, स्वस्तुतिरूपं यत्सत्यं तत्र वक्तव्यमित्यर्थः। तथा-परेसिं निंदा ' परेषां निन्दा- अन्येषां विपये सत्यापि नि: न्दा यस्मिन् भवेत्तन्न वक्तव्यमिति भावः, कथम् ? इत्याह-'न तंसि मेहावि' न त्वमसि मेधावी-अपूर्वश्रुतदृष्टग्रहणशक्तियुक्तः प्राज्ञो मेधावीत्युच्यते, एतादृशस्त्वं नासि तथा-'णं तंसि धण्णो' न त्वमसि धन्य धनवान् , धन्यवादपानं वा, ‘णं तंसि पियधम्मो' न त्वमसि प्रियधर्माधर्मपरायणाः, तया-'न तंसि कुलीनो' न त्वमसि कुलीना-उच्चकुलीन: उच्चकुलनातः, 'न तसि दाणबई ' टन होता हो वे दुर्दष्ट वचन हैं और (दुस्सुयं ) जो अच्छी तरह से सुने गये हो वे दुःश्रुत वचन हैं, तथा (अमुणियं) जोअच्छी तरह से जानने में नहीं आये हो वे असम्यक् ज्ञात वचन हैं, इन दुर्दृष्टादि वचनों को चाहे ये वचन सत्य भी हों तो भी नहीं बोलना चाहिये । ( अप्पणो थवणा परेसिं निंदा) इसी तरह जिन सत्यवचनों में आत्मप्रशंसाआत्मश्लाघा भरी होवे, और जिन सत्ययचनों में पर की निंदा होती हो वे सत्यवचन भी नहीं बोलना चाहिये, किस प्रकार नहीं बोलना चाहिये सो कहते हैं-(न तंती मेहावी ) तुम मेधावी नहीं हो, अर्थात् जो व्यक्ति अपूर्व, अश्रुत एवं अदृष्ट पदार्थ को ग्रहण करने की शक्ति से युक्त होता है उसका नाम मेघावी है ऐसे मेघावी तुम नहीं हो, तथा (ण तंसि धण्णो) तुम धनवान् या धन्यवाद के पात्र नहीं हो, ( न तसि पियधम्मो ) तुम प्रियदर्माधर्मपरायण-नहीं हो, ( न तसिभभ भूदयो ५ऽतो डाय तवां वयना दुष्ट पयन छ भने “ दुस्सुयं ' ४२११२ समायु न खाय ते दुःश्रुतवयन ४३वाय छ, तथा “ अमुणिय" જે બરાબર જાણવામાં આવ્યું ન હોય તેના વિષે વચન બોલવાં તે અસમ્યફ જ્ઞાત વચન છે, એ દુષ્ટ આદિ વચનો સત્ય હોય તો પણ બોલવાં જોઈએ नहीं. “ अप्पणो थवणा परसेनिंदा" मे ४ प्रमाणे सत्य वचनामा आत्मप्रशंसा આત્મશ્લાઘા-ભરી હોય તથા જે સત્ય વચનમાં બીજાની નિંદા થતી હોય તે સત્ય લચન પણ બોલવાં જોઈએ નહીં. કઈ રીતે બેલવાં ન જોઈએ તે હવે ४ छ-" न तंसि मेहावी” तमे भेधावी नथी. हे व्यजित २५पूर्वी, मश्रुत आने અદૃષ્ટ પદાર્થને ગ્રહણ કરવાની શક્તિવાળી હોય છે તેને મેધાવી કહે છે. તથા " ण तं सि धण्णो" तमे धनवान या धन्यवाहने पात्र नथी. "न तं सि पियधम्मो” तमे घम ५२राया नथी, “ न तं सि कुलीणो" तभे सीन नथी. શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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