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________________ ५३० प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'रट्ठिया' राष्ट्रियाः 'पुरोहिया' पुरोहिताः ‘कुमारा' कुमाराः दंडणायगा' दण्डनायकाः ‘गणनायगा' गणनायकाः 'माडंबिया' माडम्बिकाः 'सत्थवाहा' सार्थवाहाः 'कुडंबिया' कौटुम्बिकाः, 'अमचा ' अमात्याः, ' एए' एते चातुरन्तचक्रवाघमात्यान्ताः तथा ' अन्ने य एवमाई ' अन्ये च एवमादयः पूर्वोक्तेभ्यः इतरे च तत्सदृशा ये नराः परिग्गहं' परिग्राहं 'संचिणंति' संचिन्वन्ति -परिग्रहस्य संचयं कुर्वन्तीत्यर्थः कीदृशं परिग्रहम् ? इत्याह-' अणंतं ' अनन्तम्अपरिमाणत्वात् , 'असरणं' अशरण-रक्षणासमर्थत्वात् , ' दुरंतं ' दुरन्तं पर्यवसानदारुणम् ' अधुवं' अध्रुवं-विनश्वरम् , 'अनिच्चं' अनित्यम् =अस्थिरम् , ' असासयं' अशाश्वतं प्रतिक्षणं विशरणशीलम् , ' पावकम्मणेमं पापकर्मनेमंवासुदेव हैं, बलदेव हैं, माण्डलिक हैं, ईश्वर हैं, तलवर हैं, सेनापति हैं, इभ्य हैं, श्रेष्ठी हैं, राष्ट्रिय हैं, पुरोहित हैं, कुमार हैं, दंडनायक हैं, गणनायक हैं, माडम्बिक हैं, सार्थवाह हैं, कौटुम्यिक हैं, अमात्य हैं, तथा इनसे भिन्न जो और भी इन्हीं जैसे मनुष्य हैं वे सब परिग्रह का संचय करते हैं । अब सूत्रकार विशेषणों द्वारा परिग्रह में विशेषता प्रकट करते हैं वे कहते हैं कि यह परियह ( अणतं ) अपरिमित होने से अनंत है। (असरणं ) रक्षा करने में असमर्थ होने से अशरणरूप है। (दुरंतं) अन्त में इसका विपाक जीवों को बहुत ही भयंकर रूप में भोगना पड़ता है-इसलिये दुरन्तविपाक वाला होने के कारण यह दुरन्त है। (अधुवं) विनश्वर स्वभाव वाला होने के कारण यह अध्रुव है। (अणिच्चं ) अस्थिर होने से यह अनित्य है । ( असासयं ) प्रतिक्षण खिरने का स्व. વાસુદેવ છે, બળદેવ છે, માંડલિક છે, ઈશ્વર છે, તલવર છે, સેનાપતિ છે, ઈભ્ય छ, श्रेष्ठी छ, राष्ट्रिय छ, पुरेशहित छ, सुभा२ छ, नाय छ, नाय छ, માડમ્બિક છે, સાર્થવાહ છે, કૌટુમ્બિક છે, અમાત્ય છે, તથા તે સિવાયના બીજા પણ તેમના જેવા જે લોકો છે તે બધા પરિગ્રહને સંચય કરે છે. હવે સૂત્રકાર વિશેષણ દ્વારા પરિગ્રહમાં વિશેષતા પ્રગટ કરવાને માટે छ 3-2परियड “अणंतं " मे डावाथी मानत छ. “असरणं" २६॥ ४२वाने मसभ डापाथी २०१२३४३५ छ, “ दुरंत ” वान ते વિપાક (ફળ) બહુ જ ભયંકર રીતે ભેગવવું પડે છે તેથી દુરન્ત વિપાકपा पाने २0 ते दुरन्त छ. “ अधुवं" नाशवत विमान। पाथी ते अधूप छ, “अणिच्च ” मस्थिर वाथी ते मनित्य छ, “असासयं" પ્રતિક્ષણ હાથમાંથી ખરી પડવાના સ્વભાવવાળે હેવાથી તે આશાશ્વત છે, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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