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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० ११ युगलिकस्वरूपनिरूपणम् ४५७ त्तचित्तसमंसू' अवस्थितसुविभक्तचित्रश्मश्रूकाः – अवस्थितानि-सम्यक्तया यथास्थानं जातानि मुविभक्तानि शोभनतया विभागेन स्थितानि चित्राणि-शोभया विस्मयजनकानि इमभूणि येषां ते तथा । 'उवचियमंसलपसत्थ सहूलविउलहणुया' उपचितमांसलप्रशस्ताशार्दूलविपुलहनुकाः उपचितः पुष्टः अतएव मांसल मांसयुक्तः प्रशस्तः तथा शार्दूलस्येव विपुलश्च हनुः ओष्ठाऽधोभागो येषां ते तथा 'ओयवियसिलप्पवालबिंबफलसंनिभाधरोहा , ओयचियशिलाप्रवालबिम्बफलसनिभाधरोष्ठाः= ओयविय' इति विशिष्टपरिकर्मितं सुसंस्कृतं यच्छिलाप्रवालं विद्रुमः, तथा विम्बफलं च ताभ्यां सन्निभः सदृशो रक्तोऽधरीष्ठो येषां ते तथा 'पंडुरससिसकल-विमलसंखगोखीर - फेणकुंददगरयमुणालिया - धवलदंतसेढी' पाण्डुरशशिशकलविमलशङ्खगोक्षीरफेनकुन्ददकरजोमृणालिकाधवलदन्ताश्रेणय तत्रपाण्डुरं-श्वेतं यत् शशिशकलं चन्द्रखण्डं तथा चिमलशङ्खः प्रतीतः गोक्षीरं-गोदुग्धं फेना=नदीजलादि फेनः कुन्दं श्वेतपुष्पविशेषः दकरजः जलबिन्दुः मृणालिका इनकी दाढी के जो बाल होते हैं वे अच्छी तरह से जहां जिन्हें उत्पन्न होना चाहिये वहां उत्पन्न होते हैं, अच्छी तरह विभागरूप से स्थित रहते हैं, और अपनी शोभा से विस्मयजनक होते हैं। तथा ( उवचियमंसलपसत्थसदूलविउलहणुया ) इनके होठों के नीचे का जो भाग होता है बह पुष्ट होता है, मांसल होता है, प्रशस्त-सुहावना होता है और सिंह की दाढी के समान विपुल-विस्तृत होता है। (ओयवियसिलप्पवालवियफलसंनिभाधरोहा ) तथा इनके जो अधरोष्ट होते है वे अच्छी तरह परिकर्मित किये हुए दंगे के समान और बिम्बफल-कुंदरु के समान रक्त होते हैं (पंडुरससिसकलविमल संखगोखीरफेणकुंददगरयमुणालियाधवलदंतसेढी) तथा-इनका जो दांतों की पंक्ति होती है वह शुभ्रचंद्रमा के खंड जैसी, निर्मल शंख जैसी, गाय के दूध जैसी, सुविभत्तचितसमंसू " तथा तेमनी हीदीन! aron arयो भने नये ત્યાં જ ઉગેલા હોય છે, સારી રીતે વિભાજિત હોય છે, અને તેમની શોભા महमुत डोय छे, तथा “ उवचियमंसल पसत्थसहलविउल हणुया" तमना હેઠની નીચેનો ભાગ પુષ્ટ, માંસલ, શોભિત, અને સિંહની દાઢીના જેવો विपक्षविरतत हाय छे. “ ओयवियसिलप्पवालबिबफलसंनिभाधरोद्रा" तेमना અધરહાઠ સારી રીતે તૈયાર કરેલ પરવાળા જેવા તથા બિમ્બફળ-કુંદરા જેવાં दास डाय छे. . पंडुरससि-सकल-विमल-संख-गोखार-फेण कुंददगरयमुणालिया धवलदंतसेढी" तेमनी त पतिया शुभ्र य ५'307ी, नि ५ वी ગાયના દૂધ જેવી, નદી જળ આદિનાં ફીણ જેવી, વેત પુષ્પ જેવી, જળનાં શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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