SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे त्रिजगत्प्रसिद्धाः, 'समत्तभरहाहि वा' समस्तभरताधिपाः दक्षिणोत्तरभरताधिपतयः 'नारदा' नरेन्द्राः, धीराः-संग्रामादिष्वप्रतिहतशक्तिसम्पन्नाः. ससे लवणकाणणं' सशैलपनकाननं शैलैः पर्वतैःवनैः=नगरदूरस्थैः, काननैः नगरसमीपस्थैः सह-सहितं यत्तत्तथाविधं 'हिमवंतसागरंतं ' हिमवत्सागरान्त-हिमवान् क्षुल्लहिमवत्पर्वतः सागरश्च-समुद्रः तदन्तं तावत्पर्यन्तं 'भरहवास' भारतवर्ष 'भोत्तूण' भुक्त्वा-उपभुज्य 'जियसत्तू' जितशत्रवः-पराजितसमस्तशत्रवः, पवररायसीहा' प्रवरराजसिंहाः पवरेषु-महापराक्रमेष्वपि राजसु मध्ये सिंहाः सिंहसदृशाः, प्रवराश्चते राजसिंहा इति वा विग्रहः= 'पुबकडतवाषभावा ' पूर्वकृततपःप्रभावात्= पूर्वजन्मकृततपो माहात्म्यात् 'निविट्ठसंचियसुहा ' निविष्ट सञ्चितसुखाः उपभुक्तसञ्चितसुखराशयः ' अणेगवाससयमाउव्वंतो' अनेकवर्षशतायुष्मन्तः, में हो जाती है, और वे (समत्तभरहाहि वा ) समस्त भरतखंड के अधिपति होते हैं, अर्थात्-५ म्लेच्छखंड और १ आर्यखंड इस प्रकार संपूर्णभरतक्षेत्र के स्वामी होते हैं, (नरिंदा) तथा वे मनुष्यों के इन्द्र माने जाते हैं ( धीरा ) तथा वे संग्राम आदि में अप्रतिहत शक्ति से संपन्न होते हैं (ससेलवणकाणणं च हिमवंतसागरंतं भोत्तूण भरहवास जियसत्तू पवररायसीहा ) तथा वे पर्वतों, वनों-नगर से दूर रहे हुए जंगलों, एवं काननों-नगर समीपस्थ जंगलों से युक्त तथा क्षुल्लकहिमवान् पर्वत और समुद्रपर्यंत प्रसृत ऐसे भारतवर्ष का उपभोग करके समस्त शत्रुओं को पराजित करने के कारण महापराक्रम शाली राजाओं के बीच में केशरी के समान चमकते हैं, और ( पुवकडतवप्प भावा निविट्ठ संचियसुहा ) पूर्वजन्म में आचरित तप के प्रभाव से वे सभा प्रसिद्ध हाय छे, मने ती समत्तभरहाहिवा" समस्त भरतना અધિપતિ હોય છે, એટલે કે પાંચ મ્લેચ્છ ખંડ અને એક આર્યખંડ,એ રીતે सपूष्णु भरतक्षेत्रन। मधिपति डाय छे. “ नरिंदा” तथा तेमन मनुष्योना छन्द्र गावामां आवे छ, “धीरा " तेस। सयाम पाहिमा म शक्ति घराना२ डाय छ, “ससे लवणकाणणं च हिमवंतसागरत' भोत्तुणभरहवासंजियसत्तू पवररायसीहा " तथा तेथे पता, वनी-नगरथी २ मावसional, કાનને–નગરની પાસેનાં જંગલેથી યુક્ત તથા હિમાલય પર્વતથી સમુદ્ર સુધી વિસ્તૃત એવા ભારત વર્ષને ઉપભેગા કરીને સઘળા શત્રુઓને માહિત કરવાને કારણે મહાપરાક્રમી રાજાઓની વચ્ચે કેશરી “કિં” સમાન ચમકે છે, અને "पुब्वकडतवप्पभावा निविट्ट संचियसुहा" पूर्वममा ४२८i तपन प्रमा શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy