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________________ ४१० प्रश्नव्याकरणसूत्रे तानि, 'पसत्थ ' प्रशस्तानि-चक्रवर्तित्वसूचकानि उत्तमानि उत्कृष्टानि 'विभत्त' विभक्तानि स्पष्टानि यानि 'वरपुरिसलक्खण' वरपुरुषलक्षणानि-वरपुरुषाणांमहापुरुषाणां लक्षणानि हस्तरेखादिरूपाणि महत्वसूचकानि तानि धारयन्ति ये ते तथा सूर्यचन्द्रशङ्खचक्रादिरूपविशिष्टचक्रवर्तिलक्षणवन्तः तेऽपि कामभोगैरवितृप्ता एव मरणधर्म प्राप्नुवन्तीति सम्बन्धः ॥ ० ४ ॥ पुनस्ते चक्रवर्तिनः कीदृशाः? इत्याह-' बत्तीस ' इत्यादि मूलम् बत्तीस-रायवर-सहस्साणुजायमग्गा चउसट्रिसहस्स पवर जुवतीणयणकंता रत्ताभा पउमपम्हकोरंटगदामचंपगसुतवियवरकणक-निघसवण्णा सुजाय सव्वंगंसुदरंगा महग्घवरपट्टणुग्गयविचित्त रागएणी-पएणी-निम्मिय दुगुल्ल वरचीणपट्टकोसेज--सोणीसुत्तकविभूसियंगा-वरसुरभिगंध-वरचुण्णवासवरकुसुमभरिय-सिरियाकप्पियछेया-यरियसुकयरइयमालकडगंगयतुडियवर-भूसणपिणद्धदेहा एगावलिकंठसुरइयवच्छा पालंब पलंबमाणसुकयपडउत्तरिजामुदिया पिंगलंगुलिया उज्जल नेवत्थरइयचिल्लगविरायमाणा तेएण दिवाकरोव्वदित्ता सारयनवत्थणिय-महुर-गंभीर-निद्धघोसा उप्पण्ण समत्तरयणचक्करयणपहाणा नवनिहिवइणोसमिद्धकोसा चाएवं उत्कृष्ट होते हैं तथा जो रेखारूप में स्पष्ट झलकते थे-और जो महापुरुषों के हस्त आदिकों में रेखादि रूप में पाये जाते हैं इन सब को धारण करने वाले होते हैं। ऐसे महाभाग्य शाली चक्रवर्ती भी कामभोगों से अतृप्त होकर ही मृत्यु को प्राप्त करते हैं। इस प्रकार का संबंध इस सूत्र की व्याख्या करते समय लगा लेना चाहिये ॥ सू०४ ॥ મહાપુરુષના હાથ આદિમાં રેખાએ રૂપે જોવા મળે છે, તે બધાં ચિહ્નોને ધારણ કરનારા હોય છે. એવા મહાભાગ્યશાળી ચક્રવર્તી રાજાઓ પણ કામભેગોથી અતય રહીને જ મૃત્યુ પામે છે. એ પ્રકારને સંબંધ આ સૂત્રની व्या-या ४२ती मते सम सेवानी छे. ॥ सू० ४ ॥ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
SR No.006338
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1010
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size57 MB
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